दा एंगल।
रांची।
खुदी को कर बुलंद इतना की हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है यह शेर झारखंड के रांची में रहने वाली मुन्नावती पर सटीक बैठता है। जैसे योग्यता किसी की मोहताज नहीं है। वो ना उम्र देखती है और ना ही अमीरी-गरीबी। जैसे फूल की खुषबू छिपाई नहीं जाती है वैसे ही किसी योग्यता को कोई दबा नहीं सकता है वो सबके सामने आ ही जाती है। ऐसा ही उदाहरण सामने आया झारखंड के रांची में रहने वाली मुन्नावती का। मुन्नावती रांची में ईंट के भट्टे पर मजदूरी करती है। मुन्नावती भट्टे पर काम करने के अलावा अन्य जगह भी मजदूरी करती थीं। वे बेहद गरीब परिवार से आती है, लेकिन उसने अपनी लगन और पढ़ने के जज्बे से संस्कृत में एमए किया है। इतना ही नहीं उसे एमए में गोल्ड मेडल जीतते हुए यूनिवर्सिटी टॉप भी किया है। मुन्नावती रांची जिले के डोलइंचा गांव की रहने वाली हैं। संस्कृत में एमए करने के बाद अब उसको राजकीय प्लस-टू हाईपोस्ट ग्रेजुएट ट्रेंड टीचर नियुक्त किया गया है। मुन्नावती की कहानी भी रोचक है वे कहती है कि उनकी दो बड़ी बहनें हैं जिनकी शादी हो चुकी है और एक भाई है। वह कहती हैं कि आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण 1998 में दसवीं की परीक्षा पास कर पढ़ाई छोड़नी पड़ी। तब से लेकर 2005 तक पढ़ाई से दूर रहीं। इसके बाद मजदूरी करने लगीं। मजदूरी करते हुए उसने बेड़ो के करमचंद भगत कॉलेज में दाखिला लिया। और संस्कृत विषय से स्नातक की डिग्री हासिल की।