Home Politics क्या नरेंद्र मोदी को हराने के लिए राहुल गांधी आरएसएस जैसा संगठन...

क्या नरेंद्र मोदी को हराने के लिए राहुल गांधी आरएसएस जैसा संगठन तैयार करना चाहते हैं?

सुनी-सुनाई है कि इस सिलसिले में कुछ दिन पहले कांग्रेस के वॉर रूम में एक बैठक हुई थी जिसमें कांग्रेस के बड़े नेताओं के साथ राहुल और प्रियंका गांधी भी मौजूद थे

700
0

कर्नाटक में भाजपा की बाज़ी पलटने के बाद राहुल गांधी की टीम पूरी जोश में है. 24 अकबर रोड से लेकर राहुल गांधी के बंगले तक में मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा है. राहुल गांधी ने 2019 चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है.

लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष को शुरुआत में ही दो बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. पहली समस्या है प्रदेश स्तर पर दमदार नेतृत्व की कमी. दूसरी दिक्कत है ज़मीन पर संगठन की खस्ता हालत. राहुल की टीम से जुड़े कांग्रेस के एक नेता नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘अब चुनाव में करीब एक साल का ही वक्त बचा है, ऐसे में प्रदेश स्तर पर तो किसी न किसी नेता को जिम्मेदारी देनी ही होगी, वो नेता ही प्रदेश में कांग्रेस का चेहरा भी होगा और उस राज्य के बड़े फैसले भी उसी नेता से पूछकर लिए जाएंगे.’ वे आगे जोड़ते हैं, ‘लेकिन दूसरी समस्या ज्यादा विकराल है. कांग्रेस कितनी भी कोशिश कर ले, देश के हर राज्य में अपना संगठन खड़ा नहीं कर सकती.’

सुनी-सुनाई से कुछ ज्यादा है कि कुछ दिन पहले कांग्रेस के वॉर रूम में एक बैठक हुई थी. इस बैठक में कांग्रेस के बड़े नेताओं के साथ अध्यक्ष राहुल गांधी और उनक बहन प्रियंका गांधी भी मौजूद थीं. इसमें भाजपा और कांग्रेस के बीच आमने-सामने की टक्कर की हालत का विश्लेषण किया गया. साथ ही, भाजपा की ताकत और कांग्रेस की ताकत का आकलन किया गया और इसी तरह भाजपा की कमजोरी और कांग्रेस की कमजोरी को भी साफ लहजे में नेताओं को बताया गया.

इस विश्लेषण के बाद कांग्रेस के बड़े नेताओं में एक आम राय बनी है कि भाजपा की ताकत मोदी या अमित शाह नहीं हैं, उसकी असली ताकत है इसके पीछे खड़ा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस). भाजपा के पास नरेंद्र मोदी का चेहरा है, अमित शाह की रणनीति है, लेकिन कैडर आरएसएस का है.

एक वक्त में कांग्रेस का कैडर भी गांव-गांव में था. लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस कैडर आधारित पार्टी से नेता आधारित पार्टी बन गई. पिछले कुछ सालों में कैडर आधारित पार्टी बनाने का काम सिर्फ भाजपा और ममता बनर्जी की तृणणूल कांग्रेस ने किया है. यही वजह है कि पश्चिम बंगाल में आरएसएस चाहकर भी ममता बनर्जी को हरा नहीं पाता क्योंकि जमीन पर तृणमूल पार्टी का कैडर संघ के स्वयंसेवकों से भिड़ता है. यही स्थिति केरल में भी है जहां बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा का खाता नहीं खुल पाया क्योंकि वहां वामपंथी कैडर बहुत मजबूत है.

सुनी-सुनाई है कि कांग्रेस ने काफी मंथन के बाद दो बड़े जिम्मेदार लोगों को संगठन में आमूलचूल परिवर्तन करने की जिम्मेदारी दी है. बताया जा रहा है कि अशोक गहलोत पार्टी की चाल बदलेंगे और राजीव गांधी के मित्र रहे सैम पित्रोदा कांग्रेस कार्यकर्ताओं को नए जमाने के हिसाब से ट्रेनिंग देंगे. असल में कांग्रेस के पुराने और बुजुर्ग नेताओं की दलील थी कि संघ की शाखाएं हर जिले और शहर में चलती हैं. उसके प्रचारक हर राज्य में मौजूद हैं. संघ एक विशाल संगठन है जिसका एक हिस्सा भाजपा है. इन नेताओं का कहना था कि इसीलिए कांग्रेस चाहकर भी संघ से नहीं जीत सकती. लेकिन सुनी-सुनाई है कि राहुल की टीम की दलील कुछ और ही थी. इस टीम के एक सदस्य की मानें तो पिछले कुछ महीनों में भाजपा और संघ की मिली-जुली टीम को हराने में कांग्रेस कुछ हद तक सफल हुई है.

राहुल की सोशल मीडिया टीम के एक सदस्य बताते हैं, ‘जब राहुल गांधी ने फैसला किया कि अब कांग्रेस सोशल मीडिया के जरिए मोदी सरकार पर हमले करेगी तो उस वक्त तक ट्विटर पर सिर्फ दो पार्टियों का दबदबा था. भाजपा और संघ के मुकाबले सिर्फ केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ट्विटर युद्ध लड़ रही थी. लेकिन दो साल से भी कम वक्त में कांग्रेस ने हालात बदले हैं और अब कांग्रेस की सोशल मीडिया आर्मी भाजपा को मजबूत टक्कर दे रही है.’

ऐसा कैसे हुआ यह भी वॉर रूम में हुई बैठक में बताया गया. सूत्रों के मुताबिक सोशल मीडिया का उदाहरण देकर कहा गया कि जब कांग्रेस ने इस क्षेत्र में सक्रिय होने का फैसला किया उस वक्त भाजपा की सोशल मीडिया आर्मी बहुत आगे थी. धीरे धीरे कांग्रेस ने खेल बदला. कैसे बदला यह समझाने के लिए कई तरह के प्रेजेंटेशन दिए गए. बताया गया कि कांग्रेस के पास इस वक्त कहने को बहुत कुछ है. यह भी कि मोदी सरकार की कमियां गिनाने का इकलौता विकल्प कांग्रेस को बनना है, बाकी काम जनता खुद कर देगी.

बताया जा रहा है कि कांग्रेस सोशल मीडिया के प्रयोग को ज़मीनी स्तर पर भी लागू करेगी. पहले कांग्रेस के पास यूथ कांग्रेस के अलावा सेवा दल जैसे संगठन थे जो अब जमीनी कम और कागजी ज्यादा हैं. उधर, आरएसएस की सबसे बड़ी ताकत है उसकी विचारधारा. संघ का हर स्वयंसेवक भाजपा का कार्यकर्ता हो, यह जरूरी नहीं. लेकिन अगर संघ कहेगा तो वह भाजपा के लिए काम करेगा और बदले में चुनाव लड़ने के लिए टिकट नहीं मांगेगा. यही संघ और भाजपा का रिश्ता है और उनकी ताकत भी. उधर, कांग्रेस के पास ऐसा संगठन नहीं है जो विचारधारा की जमीन पर खड़ा हो और टिकट का मोहताज न हो. राहुल गांधी वैसा ही संगठन खड़ा करना चाहते हैं. सुनी-सुनाई है कि उन्होंने संगठन महामंत्री अशोक गहलोत को सबसे पहले कांग्रेस का संगठन मजबूत करने की तैयारी में जुटने को कहा है.

जानकारों के मुताबिक राहुल गांधी अपने भाषणों में जितनी आलोचना नरेंद्र मोदी की करते हैं, उतनी संघ की भी करते हैं तो इसके पीछे मूल वजह यही है. कांग्रेस को लगता है अगर उसके पास भी आरएसएस जैसे संगठन की ताकत होती तो 2019 में राहुल गांधी प्रधानमंत्री बन सकते थे. कमाल मुखौटे का नहीं है, उसके पीछे छिपी ताकत का है. जिसके पास संगठन की ताकत होगी वही प्रधानमंत्री बनेगा.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here