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जलवायु परिवर्तन से ग्रीनलैंड का पारिस्थितिकी तंत्र हो रहा प्रभावित

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हाल में ही प्रकाशित हुए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह दावा किया है। बता दें कि पूरे आर्कटिक क्षेत्र में 1,80,000 से ज्यादा पुरातात्विक स्थल मौजूद हैं, जो हजार वर्षो से यहां की मिट्टी में मौजूद विशेष गुणों के कारण संरक्षित हैं। विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित हुए अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। जलवायु परिवर्तन से न केवल ग्रीनलैंड का पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो रहा है, बल्कि इससे वहां के पुरातात्विक स्थलों पर भी खतरा मंडरा रहा है।


शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व करने वाले जॉर्गेन होलेसेन (Jorgen Hollesen) ने इस अध्ययन के लिए वर्ष 2016 से आर्कटिक क्षेत्र की सात अलग-अलग साइटों की गहन पड़ताल की है। ये क्षेत्र ऐसे हैं जहां कार्बनिक तत्व, जैसे- बाल, पंख, शंख-सीप और मांस के टुकड़ों के अलावा कुछ साइटों में वाइकिंग बस्तियों के खंडहर भी मौजूद हैं।अध्ययन में बताया गया है कि इन क्षेत्रों के घटने का सीधा संबंध मिट्टी के ताप, नमी की मात्र, हवा के बढ़ते तापमान और बारिश के मौसम में बदलाव से है, जिससे पुरातात्विक लकड़ी, हड्डी और प्राचीन डीएनए जैसे कार्बनिक तत्वों को नुकसान हो सकता है।


शोधकर्ताओं ने बताया कि जब उन्होंने इन साइटों के निष्कर्ष की तुलना पिछले सर्वेक्षणों के साथ की तो पाया कि ये इलाके लगातार कम होते जा रहे हैं। होलेसेन ने कहा कि अध्ययन में किए गए अनुमान गर्मी के विभिन्न परिदृश्यों पर आधारित हैं। जो यह बताते हैं कि इन इलाकों में औसत तापमान 2.6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है, जिससे मिट्टी का तापमान बढ़ेगा और कार्बनिक परतों के भीतर सूक्ष्मजीवों के पनपने से गतिविधियां भी बढ़ जाएंगी। उन्होंने कहा कि अध्ययन से पता चलता है कि आगामी 80 वर्षो के भीतर जैविक कार्बन (ओसी) के पुरातात्विक अंश 30 से 70 फीसद तक गायब हो सकते हैं। होलेसेन ने कहा कि इसका मतलब है कि ये कार्बनिक अवशेष खतरे में हैं। इनमें कई अवशेष ऐसे भी हैं जो लगभग 2,500 ईसा पूर्व के लोगों से संबंधित हैं।


उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि यदि समय-समय पर बारिश हो और जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव कम हो तो ग्रीनलैंड के पुरातात्विक जैविक तत्वों को क्षीण होने में ज्यादा समय लगेगा। होलेसेन ने कहा कि कुछ साइटों पर हमें एक भी पुरातात्विक जैविक तत्व नहीं मिला। इसका मतलब है कि पिछले दशकों में वे विघटित हो गए हैं। उन्होंने कहा कि सूक्ष्मजीव इन अवशेषों को विघटित कर देते हैं, लेकिन यदि वर्षा बढ़ जाती है, तो उनकी गतिविधि धीमी हो जाती है।

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