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बिल को लेकर शव सौंपने से मना नहीं कर सकते निजी अस्पताल: दिल्ली सरकार

दिल्ली में निजी अस्पतालों की मनमानी रोकने के लिए आम आदमी पार्टी सरकार ने एक मसौदे का प्रस्ताव रखा है जिसके अनुसार अस्पताल मरीजों से 50 प्रतिशत से ज़्यादा मुनाफ़ा नहीं वसूल पाएंगे.

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दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार की ओर से प्रस्तावित एक मसौदा परामर्श में कहा गया है कि राज्य के निजी अस्पताल ऐसे मरीज़ों के शव उनके परिजन को सौंपने से इनकार नहीं कर सकते, जिनकी मौत इलाज के दौरान अस्पताल में हुई हो और उनके परिवारवाले अंत्येष्टि से पहले बिल का भुगतान करने में असमर्थ हों.

निजी अस्पतालों पर शिकंजा कसने के लिए तैयार की गई प्रॉफिट कैंपिंग पॉलिसी के इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि निजी अस्पताल किसी व्यक्ति को इलाज के लिए मना नहीं कर सकते जिसे इलाज की तुरंत आवश्यकता हो.

दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि इस प्रस्ताव का मतलब यह नहीं है कि बिल माफ हो गया. अस्पताल उन परिवारों के ख़िलाफ़ कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं जो बाद में भी बिल का भुगतान नहीं करेंगे.

ऐसे मामलों में बिल कम करने का प्रस्ताव भी दिया गया है, जिनकी मौत अस्पताल में भर्ती होने के 24 घंटे के भीतर ही हो जाती है.

स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, ‘अगर कोई मरीज अस्पताल के इमरजेंसी कक्ष या कैज़ुअल्टी विभाग में भर्ती होने के छह घंटे के भीतर दम तोड़ देता है तो अस्पताल को कुल बिल का 50 प्रतिशत और 24 घंटों के भीतर होने वाली मौत के मामले में 20 प्रतिशत बिल माफ कर देना चाहिए.’

उन्होंने नई दिल्ली में बीते सोमवार को आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘कोई अस्पताल बिल का भुगतान नहीं होने की वजह से किसी मरीज़ का शव उसके परिवार को सौंपने से मना नहीं कर सकता है. मौत के बाद शव समाज का होता है और उसकी अंत्येष्टि ज़रूर होनी चाहिए.’

मसौदा नीति में 10 दिशानिर्देश दिए गए हैं जिनके अनुसार निजी अस्पतालों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे उपभोग्य सामग्री और दवाइयों पर अपने लाभ को अधिकतम 50% तक सीमित करें.

नियमों में और क्या-क्या है…

1. दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, हर अस्पताल के अपने परिसर में दवाइयों की सूची लगानी होगी और नियमों का उल्लंघन करने पर दिल्ली नर्सिंग एक्ट 1961 के तहत कार्रवाई की जाएगी.

2. डॉक्टर मरीजों को वही दवा लिख पाएंगे जो नेशनल लिस्ट आॅफ एसेंशियल मेडिसिन (एनएलईएम) में शामिल हैं. एनएलईएम मतलब जीवन रक्षक दवाओं की सूची. ये दवाएं हर अस्पताल को रखना ज़रूरी होता है.

3. अस्पताल अगर इस सूची से इतर दवाएं देता है तो उसे लिखित में इसका कारण देना होगा और उसकी फोटोकॉपी भी रखनी होगी.

4. मरीज़ के परिजनों पर यह दबाव नहीं बनाया जा सकता है कि वह किसी निजी अस्पताल या क्लीनिक के अंदर से दवा ख़रीदें. वे कहीं से भी दवा ख़रीद सकते हैं.

5. मरीज को बिल देते वक़्त इस बात की पुष्टि करनी होगी कि उनसे किसी तरह का कमीशन या डोनेशन नहीं लिया गया है.

6. अस्पतालों में होने वाले सभी भुगतान कैश में नहीं किए जाएंगे. 20 हज़ार या उससे अधिक की रकम चेक या ड्राफ्ट द्वारा जमा करनी होगी.

7. इमरजेंसी में तुरंत इलाज दिया जाएगा. बाद में किसी तरह का पेपर वर्क किया जाएगा.

8. किसी भी मरीज़ का आॅपरेशन करते वक़्त मरीज़ को बताए गए प्रोसीज़र और पैकेज से अधिक चार्ज करता है या अतिरिक्त प्रोसीज़र अपनाया जाता है, वह वास्तविक कीमत का सिर्फ 50 प्रतिशत ही वसूला जा सकेगा.

निजी अस्पताल इन नियमों का सही से पालन करें ये सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली सरकार स्वास्थ्य विभाग ड्राफ्ट लागू करने के साथ ही एक हेल्पलाइन नंबर भी जारी करेगी. निजी अस्पतालों द्वारा नियमों का उल्लंघन होने की दशा में मरीज़ या उनके परिवारवालों इस नंबर पर सीधे शिकायत दर्ज करा सकते हैं.

इस प्रस्ताव को दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर डालकर लोगों से सुझाव और आपत्तियां दर्ज कराने को कहा गया है. 30 दिन के भीतर लोग सुझाव और आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं. इसके बाद इसे लागू कर दिया जाएगा.

निजी अस्पतालों ने क्या कहा

एनडीटीवी की ख़बर के अनुसार, दिल्ली के बड़े अस्पतालों का कहना है कि वे इस मसौदा परामर्श के बारे में सरकार से बातचीत करेंगे. मैक्स हेल्थकेयर समूह का कहना है, ‘दिल्ली सरकार का यह प्रस्ताव निजी अस्पतालों की दृष्टि से कठोर है. हम इस प्रस्ताव को विस्तार से पढ़ने की प्रक्रिया में हैं और सरकार के साथ रचनात्मक तरीके से इस मुद्दे पर बातचीत करेंगे.’

एक और बड़े अस्पताल के अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हमें अभी तक मसौदा परामर्श नहीं मिला है पर हम इसके बारे में सरकार के सामने अपनी राय रखेंगें

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