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वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार राजकिशोर का निधन

71 वर्षीय राजकिशोर फेफड़ों में संक्रमण की बीमारी से जूझ रहे थे.पत्रकारिता और साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें लोहिया पुरस्कार के अलावा हिंदी अकादमी की तरफ से साहित्यकार सम्मान से भी नवाज़ा जा चुका है.

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वरिष्ठ लेखक और पत्रकार राजकिशोर का सोमवार सुबह दिल्ली में निधन हो गया. 71 वर्षीय राजकिशोर पिछले कई दिनों से फेफड़ों में संक्रमण की बीमारी से जूझ रहे थे, पिछले दिनों उन्हें एम्स के आईसीयू में भर्ती कराया गया था, जहां सोमवार सुबह करीब साढ़े नौ बजे उन्होंने अंतिम सांस ली.

वह 71 साल के थे उनके परिवार उनकी पत्नी और पुत्री है. पिछले दिनों उनके बेटे का निधन हो गया था. उनका जन्म 02 जनवरी 1947 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था.

राजकिशोर ने ‘रविवार’ से अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत की थी और वे ‘नवभारत टाइम्स’ दिल्ली में लंबे समय तक पत्रकार रहे. उन्होंने ‘दूसरा शनिवार’ मैगनीज का संपादन भी किया था. वे जनसत्ता, दैनिक जागरण समेत कई अखबारों में समसामयिक विषयों स्तम्भ भी लिखते रहे.

उनकी प्रमुख रचनाओं में  तुम्हारा सुख, सुनंदा की डायरी,  पाप के दिन, पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य, धर्म, सांप्रदायिकता और राजनीति, एक अहिंदू का घोषणापत्र, जाति कौन तोड़ेगा, रोशनी इधर है, सोचो तो संभव है, कुछ पुनर्विचार, स्त्रीत्व का उत्सव, गांधी मेरे भीतर, गांधी की भूमि से, अँधेरे में हँसी, राजा का बाजा हैं.

उन्होंने ‘आज के प्रश्न’ पुस्तक श्रृंखला, समकालीन पत्रकारिता : मूल्यांकन और मुद्दे का संपादन भी किया. पत्रकारिता और साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें लोहिया पुरस्कार के अलावा हिंदी अकादमी की तरफ से साहित्यकार सम्मान से भी नवाजा जा चुका है.

उनके निधन पर कई वरिष्ठ पत्रकारों और लेखकों ने उन्हें याद किया है.

वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने फेसबुक पर लिखा, ‘राजकिशोरजी नहीं रहे. हिंदी पत्रकारिता में विचार की जगह आज और छीज गई. कुछ रोज़ पहले ही उन्होंने अपना प्रतिभावान इकलौता बेटा खोया था…राजकिशोरजी ही नहीं गए, उनके साथ हमारा काफ़ी कुछ चला गया है. जो लिखा हुआ छोड़ गए हैं, उसकी क़ीमत अब ज़्यादा समझ आती है.’

वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन ने फेसबुक पर लिखा, ‘राजकिशोर नहीं रहे. आज सुबह एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली. सवा महीने पहले उन्होंने बेटे को खोया था. शायद यह शोक उनके फेफड़ों का‌ संक्रमण बन‌ गया. जिन‌ लोगों ने उन्हें पढ़ा‌ है, वही‌ ठीक से समझ सकते हैं, हमने क्या‌‌ खोया है. सतर्क, संतुलित और सुघड़ गद्य क्या होता है, यह हमने उनसे सीखा. उनके जाने का‌ शोक मेरे लिए इतना निजी है‌‌ कि कुछ भी कहना तत्काल संभव नहीं है.’

वरिष्ठ एंकर रवीश ने फेसबुक पर लिखा है, ‘हम सबके लिए अनगिनत मसलों पर कितना लिखा. कभी भी कोई अख़बार खोलो राजकिशोर जी का लेख मिल ही जाता था. अब नहीं मिलेगा. अब वे हैं भी नहीं. लेख के ऊपरी कोने पर राजकिशोर का छोटे बक्से में समाया चेहरा अब नहीं दिखेगा.ऐसा कोई अख़बार है भी जिसने राजकिशोर को न छापा हो? आजीवन लिखते रहने वाला समाज की व्यापक स्मृतियों के किस कोने में रहता होगा?’

वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी ने लिखा, ‘राजकिशोर जी नहीं रहे. आज सुबह 9.30 बजे उन्होंने दिल्ली के एम्स में आखिरी सांस ली. उन्होंने हिंदी समाज को दिया बहुत ज्यादा लिया बहुत कम. हिंदी समाज और मेरे जैसे लेखक पत्रकार सदा उनके ऋणी रहेंगे. उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि.’

फिल्म निर्देशक अविनाश दास ने लिखा, ‘राजकिशोर जी हमारे बनते हुए युवा दिनों के आइकॉन थे. वाणी प्रकाशन ने आज के प्रश्न नाम से एक शृंखला छापी थी, जिसके संपादक राजकिशोर जी थे… साम्यवाद को लेकर उनके विचार बहुत उदार नहीं थे और हमारे बीच जमकर कहासुनी भी होती रही. लेकिन जब भी मिले, बराबरी महसूस कराने वाले उनके बर्ताव ने मुझ पर हमेशा जादुई असर किया… थोड़े दिनों पहले उसी बेटे की मृत्यु के बाद वह शायद टूट गये और आज उनके निधन की ख़बर ने मुझे अंदर से हिला कर रख दिया. अभी उनके जाने की उम्र नहीं थी.’

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