Home Angle विद्रोह, विवाद और सफलता से सजी जिंदगी की इबारत-जॉर्ज फर्नांडिस

विद्रोह, विवाद और सफलता से सजी जिंदगी की इबारत-जॉर्ज फर्नांडिस

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1974 की रेल हड़ताल के बाद वह कद्दावर नेता के तौर पर उभरे जॉर्ज फर्नांडिस ने आज दिल्ली में आखिरी सांस ली। उन्होंने बेबाकी के साथ इमर्जेंसी लगाए जाने का विरोध किया था। रक्षा मंत्री, रेल मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों को संभालने वाले जॉर्ज का जीवन और राजनीतिक करियर विद्रोह, बगावत, विवाद और सफलता का बेमिसाल उदाहरण है। जानें इस कद्दावर नेता का सफरनामा…

गिरफ्तारी से बचने के लिए जार्ज ने पगड़ी और दाढ़ी के साथ एक सिख का भेष धारण किया था।

आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी से बचने के लिए जार्ज फर्नांडिस को पगड़ी पहन और दाढ़ी रखकर सिख का भेष धारण किया था जबकि गिरफ्तारी के बाद तिहाड़ जेल में कैदियों को गीता के श्लोक सुनाते थे। फर्नांडिस 8 से अधिक भाषाओं को जानते थे और उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और कन्नड़ जैसी भाषाओं के साहित्य का अच्छा ज्ञान था। फर्नांडिस के साथ जेल में रहे विजय नारायण ने बताया था, हम न सिर्फ छिप रहे थे, बल्कि अपना काम भी कर रहे थे। वह मशहूर लेखक के नाम पर खुद को खुशवंत सिंह कहा करते थे।
जीवन में संभाले 3 मंत्रालय, जेल से जीते थे चुनाव
फर्नांडिस ने 1977 का लोकसभा चुनाव जेल में रहते हुए ही मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से रेकॉर्ड मतों से जीता था। जनता पार्टी की सरकार में उद्योग मंत्री भी बने। हालांकि जल्द ही जनता पार्टी टूटी और फर्नांडिस ने अपनी पार्टी समता पार्टी बनाई। इसी दौर में वह बीजेपी के अधिक करीब आए। फर्नांडिस ने अपने राजनीतिक जीवन में उद्योग, रेल और रक्षा मंत्रालय संभाला। वाजपेयी सरकार में परमाणु परीक्षण के वक्त वह रक्षा मंत्री थे। बतौर रेल मंत्री उन्हें कोंकण रेलवे को शुरू करने का भी श्रेय दिया जाता है।

विद्रोह और बगावत थी शुरुआती राजनीति की पहचान

जॉर्ज फर्नांडिस की शुरुआती छवि एक मुखर विद्रोही नेता की थी। मुंबई में शुरुआती राजनीतिक जीवन के बारे में उन्होंने कई इंटरव्यू में बताया था कि वह कभी-कभी चौपाटी पर सोते थे और और फुटपॉथ से ही खाना खाते थे। धार्मिक शिक्षा लेने के लिए उन्हें 16 साल की उम्र में चर्च भेजा गया, लेकिन युवा जॉर्ज का मन वहां रमा नहीं। वह बॉम्बे (अब मुंबई) चले आए और सोशलिस्ट आंदोलनों से जुड़ गए। 50 के दशक में वह टैक्सी चालकों के आंदोलनों के बड़े तेज-तर्रार नेता बनकर उभरे।

देशव्यापी रेल हड़ताल को दिया था अंजाम

शुरुआती राजनीतिक जीवन में जॉर्ज तीखे बागी तेवरों वाले मजदूरों कामगारों के नायक के तौर पर उभरे। उन्हीं के नेतृत्व में 8 मई 1974 को देशव्यापी रेल हड़ताल का ऐलान किया गया था। इस आंदोलन को कुचलने के लिए तत्कालीन इंदिरा सरकार ने बेहद सख्ती दिखाई, लेकिन जॉर्ज को देश में बड़ी पहचान जरूर मिली।

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