कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने एक बयान को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा में बने हुए हैं. उन्होंने दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, ‘कोका-कोला कंपनी को शुरू करने वाला एक शिकंजी बेचने वाला व्यक्ति था. वह अमेरिका में शिकंजी बेचता था. पानी में चीनी मिलाता था. उसके अनुभव का आदर हुआ. हुनर का आदर हुआ. पैसा मिला , कोका-कोला कंपनी बनी…’ हालांकि, सच्चाई यह है कि कोका कोला कंपनी की शुरुआत जॉन पेम्बर्टन ने की थी जो कि एक फार्मासिस्ट थे और उनकी मौत बड़ी गरीबी की हालत में हुई थी. इससे पहले वे कोका कोला को भी बेच चुके थे. इससे पहले भी राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के अमेठी में एक सार्वजनिक सभा में कहा था, ‘मैं विपक्ष का नेता हूं, मैं दबाव डाल सकता हूं, जो मैं कर रहा हूं. लेकिन, मैं फैसले तो नहीं ले सकता हूं न! मैं किसान के लिए आलू की फैक्ट्री तो नहीं खोल सकता.’
इससे पहले अपने बयानों को लेकर भाजपा के नेता सुर्खियों में रहे हैं. इनमें गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे नेता शामिल हैं. कुछ समय पहले विजय रूपाणी का कहना था कि नारद मुनि को गूगल (सर्च इंजन) की तरह ही पूरी दुनिया की जानकारी थी. वहीं, बिप्लब कुमार देब ने महाभारत काल में भी इंटरनेट की मौजूदगी बताई थी. 2014 के आम चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पटना की एक रैली में तक्षशिला को बिहार में बता दिया था. इन बयानों को लेकर विपक्ष सहित सोशल मीडिया पर एक बड़े तबके ने भाजपा नेताओं के ज्ञान और बुद्धिमत्ता को सवालों के कटघरे में खड़ा किया था. अब इस सूची में कांग्रेस प्रमुख भी शामिल होते दिख रहे हैं. ट्विटर पर तो उन्हें अपने ऐसे बयानों के लिए भाजपा के रास्ते पर चलने वाला उसका एजेंट तक बताया जा रहा है.
बताया जाता है कि कुछ दिन पहले कांग्रेस के वॉर रूम में एक बैठक हुई थी. इसमें भाजपा और कांग्रेस की ताकत-कमजोरियों का आकलन किया गया. वहीं, भाजपा को टक्कर देने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की तर्ज पर एक संगठन खड़ा करने की इच्छा भी सामने आई थी. चूंकि, संघ जैसा संगठन तो चंद दिनों में खड़ा नहीं हो सकता. ऐसे में माना जा रहा है कि राहुल गांधी ने फिलहाल सिर्फ बयानों आदि के स्तर पर ही भाजपा और संघ के नेताओं की बराबरी करने या फिर उन्हें चुनौती देने की ठानी है.
लेकिन अपने ताजा बयान में राहुल गांधी तथ्यों के साथ-साथ एक और चूक करते हुए दिखाई देते हैं. वे अपने भाषण में अमेरिका में एक शिकंजी बनाने वाले द्वारा कोका-कोला कंपनी खड़ा करने का गलत उदाहरण तो देते हैं लेकिन, भारत में एक चाय वाले के प्रधानमंत्री बनने की बात गोल कर जाते हैं. क्या वे राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते कोका-कोला बनाने वाले को भारत जैसा देश चलाने वाले से इतना ज्यादा बड़ा आंकने लगे हैं! क्या वे भी भाजपा के कुछ नेताओं की तरह जनता को ऐसा मानते हैं जिसे न तक्षशिला के बारे में कुछ पता है न कोका कोला के! क्या वे भी यह मानते हैं कि जनता उनके हर कहे को बिना कुछ सवाल किये अपने सर पर रख लेगी! वह न तो उसके गलत होने पर सवाल करेगी और न ही वैसा कहे जाने की उपयुक्तता पर.
अगर राहुल थोड़ी बुद्धिमत्ता से काम लें तो प्रधानमंत्री के खुद को चाय वाला कहकर जनता की सहानुभूति लूटने के प्रयास का यह कहकर मुकाबला कर सकते हैं कि कांग्रेस ने ही देश को एक ऐसा शासन दिया था जिसकी वजह से एक चाय वाला आज प्रधानमंत्री बन सका. लेकिन वे सामने वाले की बातों में मौजूद कमजोरियों का फायदा उठाने और उन्हें खुद न दोहराने की सीख लेने के बजाय शायद उन्हें अपनाने में ही अब ज्यादा यकीन रखने लगे हैं.