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मुश्किल से बंगला छोड़ने वाले इन पूर्व मुख्यमंत्रियों ने कैसे इसे एक इंवेंट का रूप दे दिया है?

मजबूरी में अपने बंगले खाली करने के बाद इसका फायदा उठाने के लिए उत्तर प्रदेश के कुछ पूर्व मुख्यमंत्री किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं

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उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों के बीच आजकल मजबूरी में खाली करने पड़ गये शाही बंगलों को लेकर ‘इवेंट-आयोजनों’ की होड़ मची है. सरकारी बंगलों को शाही आवास बनाने की शौकीन पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने हरसंभव हथकंडे आजमाने के बाद जब मजबूरी में अपना बंगला छोड़ा तो उसके लिए बाकायदा एक बड़ा मीडिया आयोजन किया गया. इस दौरान अपने ‘सादगीपूर्ण बेडरूम’ से लेकर तमाम कमरों में मीडिया को घुमाया गया, कैमरों और मोबाइल फोनों को कहीं भी देख सकने की पूरी छूट दी गई. जताया गया कि 13ए माल एवन्यू के सिर्फ एक छोटे से कमरे में ही मायावती रहती थीं, बाकी सब में तो कांशीराम की ही स्मृतियां थीं. मायावती मीडिया की मौजूदगी में ही बंगले से बाहर निकलीं.

अखिलेश यादव भला इसमें कहां पीछे रहने वाले थे. सो उन्होने भी बंगले से अपनी विदाई को मीडिया इवेंट बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हाथ हिलाते हुए वे गेट से बाहर आए और लंबी सरकारी गाड़ी में बैठ कर शहीदाना अंदाज में गेस्ट हाऊस के लिए निकल गए. गेस्ट हाऊस में रात काटने के बाद से अब वे हर सुबह-शाम लखनऊ के पार्को में घूमते, क्रिकेट का बल्ला घुमाते और साइकिल से सैर करते ‘दिखाए’ जा रहे हैं. दिखाए जा रहे हैं, इसलिए कि पहले दिन जब वे लखनऊ के पार्कों की सैर पर निकले तो उनके साथ मौजूद टीम ने मोबाइल से वीडियो बना कर उसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक पहुंचा दिया था. उसे सोशल मीडिया पर भी प्रचारित किया गया.

इसके बाद अगले दिन तो अखिलेश यादव की सुबह-शाम की सैर का कार्यक्रम ही मीडिया तक पहुंचा दिया गया, ताकि उसे और भी बेहतर ढंग से मीडिया इवेंट बनाया जा सके. सैर पर निकले अखिलेश मीडिया से रूबरू होते हुए बंगला छूट जाने की कसक भी जाहिर करने से भी चूक नहीं रहे हैं. हालांकि उन्हें इस बात का जरा भी अहसास नहीं है कि ऐसा करने से उनके सुरक्षाकर्मियों और आम लोगों को कितनी तकलीफ उठानी पड़ रही है.

अखिलेश यादव सहित सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों के साथ जो भी हुआ है उसके लिए वे राज्य सरकार पर तो कोई आरोप लगा नहीं सकते. इसलिए बंगला खाली करने के बाद के इन सार्वजनिक आयोजनों के उद्देश्य सिर्फ दो ही हो सकते हैं : जनता की सहानुभूति लूटना और यह दिखाना कि वे सुप्रीम कोर्ट और देश के कानून का कितना सम्मान करते हैं. हालांकि बंगलों को खाली न करने के लिए एक लंबे समय से ये लोग जो हथकंडे अपनाते रहे हैं उन्हें और इन सभी की निजी संपत्तियों को देखें तो सिर्फ इन सभी के अंधभक्तों को ही इनसे सहानुभूति और इस मामले में इन पर विश्वास हो सकता है. अगर इस वक्त गेस्ट हाउस में रह रहे अखिलेश यादव की ही बात करें तो उनके पास लखनऊ में ही विक्रमादित्य मार्ग पर 24 हजार वर्ग मीटर का एक विशाल घर है.

उत्तर प्रदेश के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों में से एक मुलायम सिंह यादव कब्जा छोड़ने के बाद सिर्फ एक रात ही अतिविशिष्ट अतिथि गृह में रूके थे. उसके बाद वे लखनऊ से ही बाहर निकल गए. मायावती ने भी ना-नुकुर के बाद जब माल एवन्यू का बंगला छोड़ा तो यह दिखाने की कोशिश की कि वे इसमें कितनी सादगी से रहा करती थीं और वे बंगले से एकदम खाली हाथ जा रही हैं. जिस बंगले के भीतर मीडिया का और वह भी जूते पहलकर घुसना लगभग असंभव था वहां पहली बार उन्होंने पत्रकारों को जो वे कर सकते थे, करने दिया.

लेकिन युवा और समाजवादी अखिलेश यादव ने बंगला छोड़ने से पहले उसकी सीरत ही बिगाड़ दी. वे बेदखल होते-होते बंगले की सारी रंगत भी तबाह कर गए. उनके बंगला छोड़ते वक्त उसकी कई खिड़कियां तोड़ डाली गईं, वहां का इटेलियन मार्बल उखड़वा लिया गया और बंगले के अंदर सजे पेड़-पौधे तक उठवा लिए गए. आलोचना हुई तो उन्होने कहा, ‘लोग घर बदलते हैं तो अपने साथ गमले भी ले जाते हैं. अगर सरकारी आवास में खुद के लगाए पेड़ हम अपने साथ ले गए तो इसमें क्या गलत है?’

समाजवाद का यह युवा चेहरा इस बात पर कतई शर्मिंदा नहीं होता कि जिस तरह की तोड़-फोड़ बंगले के परिसर में की गई है वह न तो किरायेदार की गरिमा के अनुकूल है और न ही पूर्व मुख्यमंत्री की गरिमा के. उनके इस तर्क में भी कोई दम नहीं कि उन्होंने घर के अंदर जो कुछ हटाया या निकाला है वह सब उन्होंने खुद करवाया था. यह तर्क तभी दमदार हो सकता था जब अखिलेश इस सारे काम के लिए व्यक्तिगत रूप से भुगतान किए जाने के भी प्रमाण देते. जब कार्य सरकारी खजाने से हुआ था तो उस पर व्यक्तिगत अधिकार कैसे हो सकता है? लेकिन अखिलेश बंगले की दुर्गत भी कर गए और उस कार्य के लिए उनकी समाजवादी मुस्कान शर्मिंदा भी नहीं हो रही है.

बंगलों के छूटने से आहत इन पूर्व मुख्यमंत्रियों की बेशर्मी पर पूर्व आईपीएस अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता एसआर दारापुरी कहते हैं, ‘सुप्रीम कोर्ट का डंडा पड़ने पर सरकारी बंगला खाली करने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ऐसा जता रहे हैं जैसे कि उन्होंने कोई बहुत बड़ी कुर्बानी दी हो. इसके विपरीत उन्हें जनता की संपत्ति का दशकों तक दुरूपयोग करने में रत्ती भर भी शर्म महसूस नहीं हो रही. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सत्ता में रहने पर उन्होने कितनी ईमानदारी बरती होगी.’

पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगले जरूर खाली हो गये हैं लेकिन ऐसी सभी लड़ाइयां अभी खत्म नहीं हुई हैं. बंगलों को खाली करवाने की सूत्रधार बनी ‘लोक प्रहरी’ संस्था अब लखनऊ में तरह-तरह के ट्रस्टों के नाम पर कब्जाए गए 50 से अधिक सरकारी भवनों को खाली करवाने की लड़ाई शुरू करने की तैयारी करने में जुट गई है. इस लड़ाई से भी कई ऐसे राजनेताओं को बड़ी तकलीफ हो सकती है जो या तो इन ट्रस्टों से जुड़े हैं या उनके राजनीतिक प्रभाव के चलते ये कब्जे संभव हो सके थे.

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