जापान के सहयोग से मुंबई से अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने की मोदी सरकार की महत्वकांक्षी परियोजना शायद समय पर पूरी न हो पाए. हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक अधिकारियों का कहना है कि परियोजना के लिए दिसंबर तक जमीन का अधिग्रहण होना है, लेकिन फल उत्पादकों और स्थानीय नेताओं के विरोध की वजह से इसमें देरी हो रही है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यालय खुद इस परियोजना पर नजर बनाए हुए है.
रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार के अधिकारी जापान को यकीन दिलाने में लगे हैं कि वे महाराष्ट्र के फल उत्पादकों से बातचीत कर समस्या सुलझा लेंगे. हालांकि राजनीतिक विरोधियों के हस्तक्षेप के चलते यह आसान नहीं दिख रहा है. उदाहरण के लिए महाराष्ट्र के पालघर में ही किसान जमीन देने को तैयार नहीं हैं. पालघर में रहने वाले दशरथ पूरव यहां फल उगाते हैं. वे कहते हैं, ‘मैंने यहां बागान तैयार करने में तीन दशक लगाए हैं और वे (सरकार) कह रहे हैं कि यह जमीन उनके हवाले कर दूं. मैंने यहां इसलिए मेहनत नहीं की है कि इसे परियोजना के हवाले कर दूं. मैंने अपने बच्चों के लिए ऐसा किया है.’ पूरव का कहना है कि वे अपनी जमीन तभी सरकार को देंगे जब उनके दो बेरोजगार बेटों को सरकारी नौकरी मिलेगी.
इस मुद्दे पर नेशनल हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड के प्रवक्ता धनंजय कुमार कहते हैं, ‘भारत में किसी भी परियोजना के लिए जमीन का अधिग्रहण करना मुश्किल है. यहां बहुत ज्यादा विरोध की वजह से हमें खासी दिक्कत हो रही है.’ वहीं, अगले महीने इस परियोजना की समीक्षा करने जा रहे भारतीय रेलवे के दो अधिकारियों ने कहा कि जमीन अधिग्रहण नहीं हो पाने की सूरत में जापान से मिलने वाले सुलभ ऋण में देरी होगी. एक अधिकारी ने बताया कि जापान की जिस एजेंसी से ऋण मिलना है उसकी (पर्यावरण व समाज से जुड़ीं) शर्तों के मुताबिक समझौते पर दस्तख़त करने में भारत को समय लग सकता है.
वहीं भारत सरकार के दो अधिकारियों ने बताया कि सरकार ने बाजार की कीमत से 25 प्रतिशत ज्यादा की कीमत पर जमीन खरीदने की बात कही है. लेकिन आगामी चुनावों को देखते हुए स्थानीय नेता इस प्रस्ताव का भी विरोध कर रहे हैं. किसानों ने भी भूख हड़ताल की चेतावनी दी है. विरोधियों का कहना है कि यह एक अनावश्यक परियोजना है. उनकी मानें तो जो पैसा इस परियोजना में लगने वाला है उसे पहले से बेहाल भारत के रेल इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने में लगाया जा सकता है. उधर, शिव सेना ने कहा है कि आने वाले हफ्तों में वह इस परियोजना के खिलाफ विरोध और तेज करेगी.
उधर, जापान की चिंताओं को लेकर भारतीय अधिकारी इस महीने वहां के परिवहन मंत्रालय से मुलाकात करेंगे. भारत इस परियोजना को 2022 तक पूरा करना चाहता है. इस पर जापान के मंत्रालय के एक अधिकारी ने अखबार को बताया कि भारतीय अधिकारियों ने उन्हें विश्वास दिलाया है कि वे अधिग्रहण की समस्या का हल निकाल लेंगे. भारतीय रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अश्वनी लोहानी का भी कहना है कि किसानों के मुद्दे ऐसे नहीं हैं जिनका हल नहीं निकल सकता. इस पर जापान के अधिकारियों ने कहा, ‘हम इस परियोजना को 2023 तक शुरू करने के लिए भारत सरकार के साथ काम करते रहेंगे.