मध्यप्रदेश के मंदसौर में पिछले साल हुए किसान आंदोलन में पुलिस द्वारा गोली चलाने की जांच के लिए गठित न्यायिक जांच आयोग का कहना है कि पुलिस का ऐसा करना न्यायसंगत था. इस रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि दो किसानों की मौत सीआरपीएफ और तीन किसानों की मौत पुलिस की गोली से हुई है. अपनी इस रिपोर्ट में आयोग ने 211 गवाहों के बयान लिए हैं जिनमें 26 सरकारी अधिकारी और कर्मचारी भी शामिल हैं.
आयोग ने यह जरूर कहा है कि पुलिस और जिला प्रशासन का सूचना तंत्र कमजोर था और उनके आपसी सामजस्य की कमी के चलते आंदोलन उग्र हुआ. लेकिन इस रिपोर्ट में निलंबन पर चल रहे तत्कालीन कलेक्टर स्वतंत्र कुमार और एसपी ओपी त्रिपाठी को सीधा दोषी नहीं ठहराया है. रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि प्रशासन को किसानों की मांगों व समस्याओं की जानकारी नहीं थी और न ही उन्होंने जानने का प्रयास किया.
रिपोर्ट में आयोग ने इस बात पर भी सवाल उठाए हैं कि जब 5 जून को आंदोलनकारियों ने तोड़फोड़ और आगजनी की तो उन पर तत्काल कार्रवाई क्यों नहीं की गई. वहीं, आंदोलन के पहले असामाजिक तत्वों को पकड़ा जाना था जिसमें पुलिस ने रुचि नहीं दिखाई. अप्रशिक्षित लोगों से आंसू गैस के गोले चलवाए गए जो कि कारगर साबित नहीं हुए. रिपोर्ट में कहा गया है कि गोली चलाने में पुलिस ने नियमों का पालन नहीं किया. पहले पांव पर गोली चलानी चाहिए थी. लेकिन रिपोर्ट में ऐसा भी कहा गया है कि सीआरपीएफ और राज्य पुलिस का गोली चलाना न तो अन्यायपूर्ण है और न ही बदले की भावना से उठाया कदम. यहां यह भी जिक्र किया गया है कि उस वक्त घटना स्थल पर कोई भी किसान नेता मौजूद नहीं था जिसके चलते आंदोलन असामाजिक तत्वों के नियंत्रण में चला गया था.
गौरतलब है कि यह रिपोर्ट लगभग 9 माह पहले 11 सितंबर 2017 को सौंपी जानी थी. लेकिन, जांच समय सीमा में पूरी न होने के चलते इसे 11 जून 2018 को मुख्य सचिव को सौंपा गया. समय सीमा को इस दौरान तीन बार बढ़ाय़ा गया.
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) ने इस रिपोर्ट पर सवाल खड़े किए हैं. मध्यप्रदेश आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष आलोक अग्रवाल ने कहा, ‘मंदसौर हिंसा पर जैन आयोग की रिपोर्ट तुरंत सार्वजनिक की जाए.’
उन्होंने कहा, ‘एक प्रतिष्ठित अखबार ने इस संबंध में जो खबर प्रकाशित की है, वह चौंकाने वाली है. खबर के मुताबिक पुलिस को क्लीन चिट दी गई है. इस खबर के अनुसार किसानों को तितर-बितर करने के लिए गोली चलाना न्यायसंगत था और पुलिस ने आत्मरक्षा के लिए गोली चलाई.’
वहीं मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने भी इस बाबत प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से कुछ सवाल पूछे हैं. उन्होंने पूछा है, ‘आंदोलनकारियों की पहचान असामाजिक तत्वों के रूप में की गई है, न कि किसानों के तौर पर. क्या शिवराज सिंह चौहान सरकार इससे सहमति रखती है? अगर वे असामाजिक तत्व थे, तो मुआवजा किसे मिला? असामाजिक तत्वों को या किसानों को? क्या मुख्यमंत्री ऐसा मानते हैं कि आत्मरक्षा में गोलीबारी न्यायसंगत थी और जरूरी थी? अगर असामाजिक तत्वों ने पुलिस स्टेशन का घेराव कर लिया था, तो किसान कैसे गोलीबारी में मारे गए? अगर पुलिस और सीआरपीएफ जिम्मेदार नहीं हैं तो किसानों की मौत के लिए किसे दोषी ठहराया जाए?’