Home National एक देश, एक संविधान लेकिन “परीक्षा शुल्क” अलग-अलग क्यों…?

एक देश, एक संविधान लेकिन “परीक्षा शुल्क” अलग-अलग क्यों…?

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दा एंगल ।
जयपुर ।

यह सवाल कई बार अखबारों और कई जगह उठ चुका है, लेकिन आज तक इस समस्या का कोई हल नहीं निकाल सका है। आजादी से पहले अनुसूचित जाति, जनजाति की स्थिति बहुत बुरी थी। इसी को ध्यान में रखते हुए संविधान में उनके लिए कई तरह की रियायतें दी गई, लेकिन यह रियायतें देते समय यह भी कहा गया था कि यह स्थिति तभी तक रहेगी जब तक इनकी स्थिति में सुधार नहीं हो जाए। आज इस वर्ग की स्थिति मंे बहुत सुधार है, लेकिन कोई भी सरकार इनके मसलों को छेड़ना नहीं चाहती है। हर पार्टी को अपनी सीट प्यारी है, चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े। हां हम बात कर रहे हैं सरकारी नौकरियों और दूसरे क्षेत्र में हो रही प्रतिस्पर्धा की। आज के समय में सरकारी नौकरी के लिए प्रतिस्पर्धा दिन प्रतिदिन बढती जा रही है। हर कोई सरकारी नौकरी चाहता है चाहे वो सामान्य हो या एससी-एसटी या ओबीसी। आवेदन भरते समय सरकार के लिए सभी समान होते हैं, लेकिन आवेदन शुल्क अलग-अलग होते क्यों। कितने ही ऐसे छात्र-छात्राएं है जो सामान्य वर्ग से होते हैं लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नही होती। जिस वजह से उनके लिए ये फीस भरना काफी मुश्किल भी होता है। लेकिन भर्ती में सामान्य वर्ग को किसी भी तरह की छूट नहीं होती है। चाहे फीस में हो या अंक लाने में। वहीं जब बात मैरिट की आती है तो आरक्षित वर्ग के छात्र-छात्राएं कम अंक लाकर भी पद पा जाते हैं और सामान्य वर्ग कड़ी मेहनत के बाद भी उसे पद नहीं मिलता। अगर देखा जाए तो मेहनत सभी वर्ग के छात्र करते है लेकिन सरकार की नीतियों की वजह से कुछ मेहनत करने के बाद भी रह जाते है और कुछ थोड़ी सी मेहनत में लग जाते हैं। हम किसी वर्ग विषेष की आलोचना नहीं कर रहे हैं, लेकिन जब नौकरी और कोई दूसरी बात होती है तो उस पर आरक्षित वर्ग लाभ उठा ले जाता है। माना पहले आरक्षित वर्ग की स्थिति अच्छी नहीं थी लेकिन आज परिस्थितियां बदल गई हैं। आरक्षित वर्ग के लोग आज अच्छे-अच्छे पद पर पदासीन है। तो ऐसे में प्रतिस्पर्धा बराबर की होनी चाहिए। आज सामान्य वर्ग की आर्थिक स्थिति भी इतनी अच्छी नहीं है कि वो सरकार की ओर से आयोजित प्रतियोगिता परीक्षा के मोटे-मोटे शुल्क चुका सके।

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