भरतपुर।
कहते है सांच को आंच नहीं…सच को साबित होने में वक्त जरूर लगता है पर वो सामने आकर ही रहता है।राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने छह साल पुराने मामले में पीड़िता के पक्ष में फैसला सुनाया है। इस मामले में भरतपुर निवासी अवधेश अवस्थी और कमलेश अवस्थी ने भरतपुर के अरोडा अस्पताल के खिलाफ अस्पताल पर इलाज के दौरान गंभीर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया था। पीड़िता पक्ष के वकील राहुल कामवार ने बताया कि परिवादी अवधेश अवस्थी की गर्भवती पत्नी को तबीयत बिगड़ने के बाद अरोड़ा अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया था। परिवादी ने अरोड़ा अस्पताल प्रबंधन और अस्पताल के डाॅक्टरों व नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग बैंच संख्या 2 जयपुर में परिवाद संख्या 35/2013 दायर किया था। इस पर फैसला देते हुए आयोग ने अस्पताल प्रबंधन को मानसिक संतात की क्षतिपूर्ति स्वरूप 25 लाख रुपए और परिवाद व्यय के लिए 50 हजार रुपए दो माह में भुगतान करने के आदेष दिए। घटना के समय परिवादी की पत्नी छह माह के गर्भ से थी। अस्पताल प्रशासन ने आनन फानन में महिला का ऑपरेशन किया। ऑपरेशन के दौरान अस्पताल के डाॅक्टरों ने महिला के गर्भाशय को यूरिन ब्लडर के साथ सिल दिया था। बाद में इलाज के दौरान महिला का गर्भाशय निकालना पड़ा और परिवादी कभी भी मां नहीं बन पाई। यही नहीं परिवादी की छह माह की नवजात की भी इलाज के दौरान मौत हो गई थी। इस मामले में अदालत ने अस्पताल प्रबंधन की लापवाही मानते हुए आदेष की तारीख से मानसिक संतात की क्षतिपूर्ति स्वरूप 25 लाख रुपए और परिवाद व्यय के लिए 50 हजार रुपए दो माह में भुगतान करने के आदेश दिए।