दा एंगल।
जयपुर।
भारत की विश्व में हमेशा पहचान ज्ञानी देश के रूप में होती है। भारत ऋषियों-मुनियों की तपोभूमि रही है। भारत के आर्यभट्ट ने ही पहली बार शून्य की परिभाषा दी थी। दुनिया में सभी भाषाओं का उद्गम भारत से ही हुआ है। भारत ने ही दुनिया के हर कोने में ज्ञान के प्रकाश को पहुंचाया है।
भारतवर्ष का नाम आते ही दुनिया में हर तरफ धर्म, ज्ञान और परम्पराओं की तस्वीर सामने आ जाती है। यह देश अपने इसी इसी ज्ञान की वजह से दुनिया में जाना जाता है। प्राचीन काल में वेद विद्यालय, गुरुकुल में विद्यार्थी अपना अध्ययन करते थे। उस समय के गुरुओं को सभी ब्राह्मण के सभी रहस्यों और दूसरी जानकारी रहती थी।
भारत बदला, बदल गई शिक्षा प्रणाली
समय बदलता गया शिक्षा प्रणाली भी बदलती गई। भारत में अंग्रेजों ने 200 साल तक शासन किया। अंग्रेज जाते-जाते भारत पर एक अमूल्य चीज दे गए वो थी अंग्रेजी। अंग्रेजी जैसे-जैसे प्रचार प्रसार होता गया भारतीय उतना ही अपनी संस्कृति सें दूर होते चले गए। शिक्षा प्रणाली में भी अमूलचूल परिवर्तन हो गए।
लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम में पढ़ाने लगे। ऊंची-ऊंची स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजने गए। ठीक है कि आधुनिक युग के साथ चलना अच्छी बात है, लेकिन अपनी संस्कृतिक को भूल जाना कहां तक न्यायोचित है। आज के युवाओं ने आधुनिक शिक्षा प्रणाली ली पर वे अपनी संस्कृति से दूर होते चले गए।
अपनी संस्कृति से दूर होते नौजवान
आज के युवा कितने अपनी धर्म और संस्कृति के प्रति सजग हैं इसका उदाहरण है कि किसने पूछा कि भगवान राम के कितने भाई थे तो आज के पढ़े लिखे युवा उनको यह भी नहीं पता कि राम के कितने भाई थी। कोई कह रहा था दो तो किसी ने कहा पता ही नहीं। इससे ज्यादा अचरज की बात क्या होगी कि उन्हें यह भी नहीं पता कि भीम रामायण मंे थे या महाभारत में।
आधुनिक पढ़े-लिखे युवाओं से जब पूछा गया कि कंस किसके मामा थे तो उनका जवाब था रावण के। अब आप ही बताइए जो भारत देश जिसने पूरे संसार में ज्ञान का प्रकाश फैलाया उसी देश के नौजवानों को अपनी संस्कृति का ज्ञान नहीं तो इससे ज्यादा उस देश के लिए शर्म की बात क्या हो सकती है।