दा एंगल।
रांची।
महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा ने अपनी रणनीति में परिवर्तन किया है। झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी रणनीति में परिवर्तन किया है। अब वो पहले से अधिक सतर्क हो गई है। झारखंड में दो चरणों का मतदान हो गया है।
भाजपा पहली बार बिना सहयोगी के लड़ रही चुनाव
गौरतलब है कि भाजपा पहली बार झारखंड में बिना सहयोगी पार्टी के चुनाव लड़ रही है। ऐसे में वहां पर बीजेपी को बहुमत हासिल होगा इसमंे संषय लग रहा है। बीजेपी की पुरानी सहयोगी पार्टी एजेएसयू इस बार अकेले चुनाव लड़ रही है ऐसे में कुरमी कोयरी वोट का बिखराव हो सकता है।
झारखंड में वोटर तय करेंगे सत्ता की चाबी
वहीं ये पहला विधानसभा चुनाव में है जिसमें वोटर यह तय करेंगे कि अब की बार रघुबर दास या हेमंत सोरेन के हाथों में राज्य की सत्ता की चाबी किसको सौंपनी है। अभी तक के कराए गए सर्वे के अनुसार हेमंत सोरेन लोगों की पहली पसंद माने जा रहे हैं वहीं इस सर्वे से भाजपा को झटका लग सकता है। झारखंड का आदिवासी वोटर इस बार उदासीन लगा रहा है जिससे ये पता नहीं लग पा रहा है कि उसका रुझान किस तरफ है। इसका उदाहरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खूंटी सभा में देखने को मिला।
पीएम ने इस सभा में कहा कि जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य और विकास के लिए एक आदिवासी को ही प्रभार दिया गया है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे काफी कोसो दूर है।
खासकर आदिवासी जिनके ऊपर बीजेपी का प्रभाव इसलिए पड़ा था क्योंकि उन्होंने बाबूलाल मरांडी के बाद अर्जुन मुंडा को झारखंड का हमेशा दायित्व दिया था लेकिन जब बहुमत की सरकार आई तो नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पसंद रघुवर दास बने और इस चुनाव में भी उन्हीं के चेहरे पर वोट मांगा जा रहा है। जबकि सामने हेमंत सोरेन है इसलिए आदिवासी वोटरों का बीजेपी से ज्यादा झुकाव हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले गठबंधन के उम्मीदवारों पर दिख रहा है.
आदिवासियों के लिए 28 सीटें आरक्षित
झारखंड में आदिवासियों के लिए 28 सीटें आरक्षित हैं और इन सीटों पर जमीन के मालिकाना हक से जुड़े सीएनटी एक्ट और सीएनपीटी एक्ट का भी असर काफी देखने को मिल रहा है।