दा एंगल।
नई दिल्ली।
देशभर में नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध तेज हो गया है। यह पहले पूर्वोत्तर राज्यों तक ही सीमित था जो अब बढ़कर उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बंगाल तक पहुंच गया है। इसकी आंच पूरे देश में अब तेजी से फैलती जा रही है।
लोकसभा-राज्यसभा में पारित
केंद्र सरकार शीतकालीन सत्र में कैब लोकसभा और राज्यसभा से पारित करा लिया है। इसके राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर कर दिए यानी इस बिल ने कानूनी रूप ले लिया है। पूर्वोत्तर के लोग इस बिल को राज्यों की सांस्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक विरासत से खिलवाड़ बता रहे हैं.
दिल्ली में छात्रों का जबरदस्त उत्पात
कैब को लेकर जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों ने दिल्ली में जमकर उत्पात मचाया। सरकारी सम्पत्ति को जमकर तोड़फोड़ा। इस विरोध प्रदर्शन में छह पुलिसकर्मियों को चोटें भी आईं। पुलिस का कहना है कि सीसीटीवी कैमरे में प्रदर्शनकारी की फोटो आ गई है। मामला शांत होने के बाद इन पर कार्रवाई की जाएगी। प्रदर्शनकारी छात्रों को कहना है कि पुलिस ने लाइब्रेरी में पढ़ रहे छात्रों को मारापीटा। इसके विरोध में उन्होंने अर्द्धनग्न प्रदर्शन किया।
वहीं उत्तर प्रदेश के एमओयू, सहारनपुर और लखनऊ में छात्रों ने जोरदार प्रदर्शन किया। इसको देखते हुए प्रशासन ने अगले आदेश तक इंटरनेट सेवाओं को रोक दिया है।
क्या है नागरिकता संशोधन बिल
नागरिकता संशोधन बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया किया है। जिससे नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नियमों में बदलाव होगा। नागरिकता बिल में इस संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा.
कम हो जाएगी निवास अवधि
भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए देश में 11 साल निवास करने वाले लोग योग्य होते हैं. नागरिकता संशोधन बिल में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शरणार्थियों के लिए निवास अवधि की बाध्यता को 11 साल से घटाकर 6 साल करने का प्रावधान है.
क्यों हो रहा है विरोध
इसे सरकार की ओर से अवैध प्रवासियों की परिभाषा बदलने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। गैर मुस्लिम 6 धर्म के लोगों को नागरिकता प्रदान करने के प्रावधान को आधार बना कांग्रेस और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट धार्मिक आधार पर नागरिकता प्रदान किए जाने का विरोध कर रहे हैं। नागरिकता अधिनियम में इस संशोधन को 1985 के असम करार का उल्लंघन भी बताया जा रहा है, जिसमें सन 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी धर्मों के नागरिकों को निर्वासित करने की बात थी। जबकि केन्द्र सरकार कह रही है कि ये विधेयक सभी के लिए समान है।