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इन गलतियों की वजह से मिली पायलट को अपने ही बनाए खेल में मात

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द एंगल।

जयपुर।

प्रदेश की राजनीति में चल रहे घमासान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच की खाई अब इतनी बढ़ चुकी है जिसे पाट पाना असंभव सा लग रहा है। हालांकि राजनीति कब खाई के ऊपर स्वार्थों का पुल बना दे ये भी कहा नहीं जा सकता। शायद इसीलिए राजनीति को संभावनाओं का खेल कहते हैं और इस मामले के जानकार तो इस बात को मानने से भी गुरेज नहीं करते कि यहां कभी भी कुछ भी हो सकता है और ऐसा ही कुछ सचिन पायलट के मामले में भी हुआ। किसी ने कहां सोचा था कि एक दिन सचिन पायलट की महत्वाकांक्षा इस हद तक बढ़ जाएगी कि वे पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष और सरकार में उपमुख्यमंत्री जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभालने के बावजूद पार्टी से बगावत कर देंगे।

पायलट ने की दुश्मन को कमजोर समझकर की गलती

लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से एक बात तो पानी की तरह साफ हो गई है कि सचिन पायलट का एकमात्र उद्देश्य मुख्यमंभी अशोक गहलोत के राजनैतिक करियर को खत्म करना था। जिसमें उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर एक फुलप्रूफ प्लान बनाया। लेकिन कहते हैं ना कि आप अपनी जीत को लेकर चाहे कितने ही आश्वस्त क्यों न हों लेकिन फिर भी दुश्मन को कमजोर नहीं समझना चाहिए और फिर दुश्मन अगर राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले दिग्गज नेता अशोक गहलोत हों तो फिर तो कमजोर समझना मतलब खुद के ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने से जरा भी कम नहीं है। ऐसी ही कुल्हाड़ी सचिन पायलट ने अपने पैरों पर मार ली है। इस पूरे षड्यंत्र में बीजेपी और पायलट ने दिमाग तो पूरा लगाया, पर कुछ गलतियां भी कर दीं और इन्हीं गलतियों ने उनके इस फुलप्रूफ प्लान की हवा निकाल दी।

मानेसर के रिजॉर्ट में छिपकर कर दी गलती

सचिन पायलट कहते हैं उनकी मदद बीजेपी नहीं कर रही है। अगर ऐसा है तो वे मानेसर के उसी होटल में कैसे छुपे बैठे हैं जहां मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार गिराने से पहले वहां के कांग्रेस विधायक छिपे थे, जो विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ अब बीजेपी में हैं।

पायलट ने सोलंकी से पहले ही ले लिया था साथ निभाने का वादा

सचिन पायलट एसओजी के नोटिस से नाराज होकर गए हैं। ये बात भी तब गलत साबित हो गई जब उनके खेमे के ही विधायक वेद प्रकाश सोलंकी ने एक वीडियो जारी कर कुबूल किया कि वे पायलट के साथ इसलिए हैं क्योंकि पायलट ने विधायनसभा चुनाव से पहले ही उनसे वादा लिया था कि जब भी वे सीएम बनने के लिए ऐसा कदम उठाएंगे तब उन्हें उनका साथ देना होगा। तभी वो टिकट दिलाएंगे।

न्यायालय में पैरवी के लिए चुने भाजपा के वकील

सचिन पायलट खुद अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। ये बात भी गलत है क्योंकि सचिन पायलट का केस लड़ रहे दोनों ही वकील बीजेपी की प़ृष्टभूमि से हैं। अगर वाकई में पायलट साहब अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे हैं तो उन्हें वकील तो कम से कम कांग्रेस या न्यूट्रल विचारधारा का करना चाहिए था।

कांग्रेस के अभियान से दूर रहे सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले विधायक

सचिन पायलट और उनके खेमे के विधायकों का कहना है उनकी पार्टी में पूरी निष्ठा है, और उनकी नाराजगी सिर्फ प्रदेश में सरकार नेतृत्व यानि मुख्यमंत्री गहलोत से है। अगर वाकई में यही बात थी और पायलट खेमे की पार्टी से कोई नाराजगी नहीं है तो फिर क्या वजह रही कि उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रव्यापी अभियान #SpeakUpForDemocracy को लेकर मौन साधे रखा। और वे भी वे विधायक जो छोटे-मोटे अवसरों और मुद्दों पर भी अपनी राय सोशल मीडिया के जरिए जरूर देते हैं, यानि सोशल मीडिया पर खासे एक्टिव रहते हैं।

वायरल हुए ऑडियो क्लिप में थी गजेंद्र सिंह शेखावत की आवाज

सचिन पायलट कैंप बार-बार ये बात दोहरा रहा है कि वे भाजपा के बहकावे में आकर नहीं बल्कि अपनी मर्जी से मानेसर में ठहरे हुए हैं और इसमें भाजपा का कोई हाथ नहीं है। लेकिन ये बात तो गलत उसी दिन साबित हो गई थी जब तीन ऑडियो वायरल हुए थे जिसमें पायलट कैंप के विधायक और बीजेपी के केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत की बातचीत थी। जिसमें साफतौर पर विधायकों के खरीद फिरोख्त की बात की जा रही थी।

पायलट को अपने ही विधायकों से मिला धोखा

सचिन पायलट के इस प्लान के फेल होने के पीछे एक वजह यह भी रही कि वे जिन विधायकों को अपने खेमे का मानकर चल रहे थे उन्होंने ऐन मौके पर उन्हें धोखा दे दिया। पायलट को लग रहा था कि जब वे पार्टी से बगावत का कदम उठाएंगे तो उनके साथ 30 विधायक होंगे, मुख्यमंत्री गहलोत की रणनीति के आगे उनका यह भ्रम टूट गया और उनके साथ केवल 18 विधायक ही आए, बाकि गहलोत खेमे का हिस्सा बन गए। यहां भी मुख्यमंत्री ने कोई ढील नहीं देते हुए उनसे मीडिया के सामने कबूल करवा दिया कि वे गहलोत के साथ हैं, ताकि वे फिर से पाला न बदल सकें।

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