द एंगल।
जयपुर।
राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन का आज आठवां दिन है। एक हफ्ते से अधिक का समय बीत चुकने के बाद भी रेलवे ट्रेक पर जमा गुर्जर समाज का एक धड़ा पीछे हटने के मूड में दिखाई नहीं दे रहा है। गुर्जर आंदोलन पर सरकार से कई वार्ताओं और मान-मनोव्वल के बाद भी मामले पर गतिरोध बरकरार है। कर्नल बैंसला समर्थित गुर्जर समाज ने भले ही मंत्री अशोक चांदना को रेलवे ट्रैक पर बुलाने का अल्टीमेटम दिया हो, लेकिन चांदना पहले ही इस गतिरोध को लेकर स्थिति साफ कर चुके हैं। वे बता चुके हैं कि सरकार ने गुर्जर समाज की मानने योग्य सभी मांगों को मान लिया है और अब जिस भी बात पर गतिरोध बन रहा है, उसे वार्ता के जरिए सुलझा लिया जाएगा।
सार्वजनिक स्थलों पर छोटा हो आन्दोलनों का स्वरूप
इसके अलावा मंत्री चांदना लगातार आंदोलनकर्ताओं को ट्रेक से हटने की अपील भी करते रहे हैं। लेकिन कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने शायद ठान ही लिया है कि सरकार की आड़ में वे मासूम जनता के लिए मुसीबतों का पहाड़ खड़ा करके ही रहेंगे। लोकतंत्र में प्रदर्शनों का प्रतीकात्मक महत्व भी होता है, मगर सार्वजनिक जगहों पर जब जनजीवन अस्त-व्यस्त होने लगे तो ऐसे आंदोलनों का आकार छोटा भी कर देना चाहिए। लेकिन गुर्जर समाज के पैरोकार अपनी कई मांगें मनवाने के बावजूद सिस्टम और सरकार को नाकारा दिखाने के लिए अराजक आंदोलनों की संस्कृति विकसित कर रहे हैं, जो बिल्कुल भी ठीक नहीं है।
कई दिनों से आन्दोलन प्रभावित क्षेत्रों में इंटरनेट बंद
आन्दोलन को लेकर 12 घंटे का अल्टीमेटम देते हुए कहा गया था कि इसकी आग प्रदेश के दूसरे इलाकों तक भी पहुंच सकती है। दूसरी तरफ ट्रैक बाधित होने के कारण कई ट्रेनों को डायवर्ट और रद्द करने का सिलसिला भी बदस्तूर जारी है। इसके चलते उत्तर-पश्चिम रेलवे ने पीलूपुरा मार्ग से गुजरने वाली अपनी 10 ट्रेनों को डायवर्ट किया है। तो कोटा रेल मंडल ने भी इस रूट से गुजरने वाली कई ट्रेनों को रद्द कर दिया है। वहीं आंदोलन के कारण भरतपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, धौलपुर और दौसा जिले समेत जयपुर के गुर्जर बाहुल्य वाले इलाकों में इंटरनेट बंद होने से आमजन और व्यापारी वर्ग हलकान हो गया है। इंटरनेट के अभाव में ऑनलाइन लेनदेन बंद हैं। लोगों के जरूरी काम अटक रहे हैं। कुल मिलाकर पूर्वी राजस्थान के लोगों को भारी परशानियों का सामना गुर्जर आन्दोलन के चलते करना पड़ रहा है।
आन्दोलन की वजह से ट्रेनें नहीं रोकने पर सहमति जताएं सभी राजनीतिक दल
इसलिए इस गुर्जर आंदोलनों के पीछे जो भी राजनीतिक ताकतें हैं, या इन मुद्दों से सरकार की फजीहत होते देख जो लोग खुश हो रहे हैं, उन्हें अपनी ऐसी राजनीतिक मतलबपरस्ती से उबरना चाहिए। इस देश की संसद में जब भी बहस हो, तमाम राजनीतिक दलों को इस बात पर एकमत होना चाहिए कि देश में कहीं भी ट्रेन नहीं रोकी जाएगी। इसी तरह सड़कों पर होने वाले आंदोलनों में एम्बुलेंस-फायर ब्रिगेड को रास्ता देने पर सहमति होनी चाहिए। चाहे आंदोलन सरकारों के खिलाफ हो, या किसी और किस्म के मुद्दों को लेकर हो, इन आंदोलनों को लंबे समय तक अराजक बने रहने की छूट नहीं दी जानी चाहिए। क्योंकि देश का समाज का कोई भी तबका लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान से ऊपर नहीं है। लिहाज़ा गुर्जर समाज को भी लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करते हुए लोगों को पहुंचाई जा रही दिक्कतों पर माफी मांगनी चाहिए।
आन्दोलन की वजह से निर्दोषों के साथ हो रही नाइंसाफी
यह बात सिर्फ राजस्थान या यहां चल रहे गुर्जर आंदोलन की ही नहीं है, आंदोलनों के नाम पर किसी भी राज्य से गुजरने वाली रेलगाड़ियों को रोक देना बिल्कुल गलत है। क्योंकि बहुत से लोग उन रेलगाड़ियों में इलाज के लिए जा रहे होते हैं, बहुत से लोग घर लौट रहे होते हैं, और बहुत से लोग नौकरी के इंटरव्यू के लिए, किसी दाखिला-इम्तिहान के लिए जा रहे होते हैं । इसलिए ऐसे तमाम लोगों की जिंदगी को तबाह करके उनके सीमित मौकों को खत्म करने का हक किसी आंदोलनकारी को नहीं होना चाहिए। गुर्जर समाज द्वारा आम जनता की आवाजाही पर अपना आक्रोश निकालना सरासर गलत है।
गुर्जर आंदोलन के इन नेताओं को शायद यह अंदाज़ा नहीं है कि कई-कई हफ्तों तक या महीनों तक जब रेलगाड़ियां बंद रहती हैं, तो उनसे गरीबों की जिंदगी पर कितना बुरा असर पड़ता है। पूरे इलाकों और आगे के राज्यों की अर्थव्यवस्था चौपट होती है, बना हुआ सामान निकल नहीं पाता, कच्चा माल आ नहीं पाता, सड़कों से आवाजाही महंगी पड़ती है, कारखाने बंद होने की नौबत आ जाती है और बड़े पैमाने पर कारोबार तबाह होते हैं। यदि उनको इस सब का अंदाज़ा है तो फिर क्यों वह जानबूझकर उन लोगों के साथ इतनी नाइंसाफी कर रहे हैं, जिनसे इनका कोई लेना देना नहीं है।
गलत नीतियों के खिलाफ आवाज उठाए प्रदेश की जनता
अगर कुछ लोगों को आंदोलन का हक है, तो बाकी लोगों को भी सार्वजनिक जगहों पर अपनी आवाजाही का एक बुनियादी हक है। इसलिए इन दिनों चल रहे इस गुर्जर आंदोलनों को खत्म होना ही चाहिए। जो राजनीतिक दल या जो सामाजिक संगठन किसी आंदोलन के लिए रेलगाड़ियों को प्रतीकों से अधिक देर तक रोकते हैं, वे समाज के व्यापक हितों के खिलाफ काम करते हैं। इसलिए कई मौके देने के बाद अगर यह समुदाय सरकार की किरकिरी करने पर उतारू है, तो प्रदेश की जनता को भी मुखर होकर इनकी गलत नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिइ। पटरियों पर प्रतिरोध रेलगाड़ियों को तो रोक देता है, लेकिन देश को गड्ढे में ले जाता है और ऐसी किसी भी नौबत की सबसे बुरी मार गरीब और असंगठित तबके पर सबसे ज्यादा पड़ती है। इसलिए यह सिलसिला खत्म किया जाना चाहिए।