Home National सुपुर्द-ए-खाक़ हुए कांग्रेस के ‘चाणक्य’, सीएम गहलोत ने खोया भरोसेमंद साथी

सुपुर्द-ए-खाक़ हुए कांग्रेस के ‘चाणक्य’, सीएम गहलोत ने खोया भरोसेमंद साथी

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द एंगल।

अहमदाबाद/जयपुर।

कांग्रेस के चाणक्य, भरोसेमंद सिपहसालार और एक मजबूत स्तंभ कहे जाने वाले वरिष्ठ नेता अहमद पटेल आज सुपुर्द-ए-खाक़ हो गए। उनकी अंतिम ख्वाहिश के मुताबिक उन्हें पैतृक गांव पीरामण में उनके पिता की कब्र के पास ही दफनाया गया। वे ऐसे समय में पार्टी को अलविदा कहकर गए हैं, जब पार्टी में शीर्ष नेतृत्व को लेकर फिर से सवाल उठाए जाने लगे हैं और पिछले कुछ चुनावों में पार्टी को मिली हार के बाद मंथन किए जाने की मांग जोर पकड़ रही है। ऐसे समय में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी को अहमद पटेल जैसे विश्वसनीय नेता की सबसे ज्यादा जरूरत थी। क्योंकि इससे पहले भी सोनिया गांधी के सामने जब भी कोई चुनौती आती थी तो वे सबसे पहले अहमद पटेल को ही याद करती थीं।

अहमद पटेल ने ही सोनिया गांधी को सुझाया था डॉ. मनमोहन सिंह का नाम

2004 में जब कांग्रेस फिर से सत्ता में आई, तब सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाए जाने की मांग उठ रही थी और सोनिया ऐसा नहीं चाहती थीं। ऐसे में फिर से पार्टी में ऐसे योग्य नेता की तलाश की जाने लगी, जिसे देश की कमान सौंपी जा सके। तब अहमद भाई ने ही देश के नामी अर्थशास्त्री और पूर्व वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का नाम सुझाया था। पार्टी के अन्य नेताओं के साथ ही खुद राजस्थान के मुख्यमंत्री भी अपने अनन्य मित्र को खोकर क्षुब्ध हैं। क्योंकि जब राजस्थान की सियासत में एक सियासी घटनाक्रम घटित हुआ, तो कांग्रेस के संकटमोचन कहलाने वाले सीएम अशोक गहलोत के लिए अहमद पटेल ने संकटमोचन की भूमिका निभाई थी और सीएम गहलोत-सचिन पायलट के बीच की खाई को पाटने के लिए सोनिया गांधी ने अपने विश्वसनीय अहमद पटेल को ही भेजा था।

यही वजह रही कि इस मसले को सुलझाने के लिए बनाई गई तीन सदस्यीय कमेटी में अहमद पटेल को भी सदस्य बनाया गया था। एक साथी के रूप में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और अहमद पटेल के आपसी संबंध बेहद अच्छे रहे। दोनों नेताओं में कई समानताएं भी रहीं।

सीएम अशोक गहलोत और अहमद पटेल की कई बातें एक जैसी

  • दोनों नेताओं ने पार्टी संगठन को मजबूत करने के लिए काम किया
  • पार्टी संगठन में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे
  • पार्टी और गांधी परिवार के वफादार रहे
  • स्व. इंदिरा गांधी के समय से ही पार्टी से जुड़े रहे
  • विभिन्न मौकों पर पार्टी के लिए संकटमोचन के रूप में काम किया
  • पार्टी संगठन में महासचिव पद पर रहे
  • दोनों नेताओं का कोई पॉलिटिकल बैकग्राउंड नहीं
  • अपने काम के बल पर पार्टी संगठन और राजनीति में ऊंचे मुकाम पर पहुंचे

2017 के राज्यसभा चुनाव में सभी ने माना अहमद पटेल की रणनीति का लोहा

अहमद पटेल 3 बार लोकसभा और 5 बार राज्यसभा सांसद रहे। लेकिन एक राज्यसभा चुनाव ऐसा रहा जिसने साबित कर दिया के वे ही कांग्रेस के चाणक्य हैं। दरअसल 2017 में गुजरात में सीटों पर राज्यसभा चुनाव होने थे। कांग्रेस की ओर से अहमद पटेल प्रत्याशी थे तो, भाजपा ने भी अमित शाह और स्मृति ईरानी को प्रत्याशी बनाया था। दोनों की जीत तो लगभग तय थी, पेंच तो अहमद पटेल की जीत को लेकर फंसा हुआ था। इसके अलावा उस समय केंद्र में सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने अपने कार्यकाल के 3 साल पूरे किए थे और उसने देशभर में कांग्रेसमुक्त भारत का अभियान छेड़ा हुआ था। ऐसे में ये चुनाव व्यक्तियों का चुनाव न रहकर दो विचारधाराओं के बीच की लड़ाई में बदल गया था। लेकिन यहां अहमद पटेल ने पर्दे के पीछे कुछ ऐसी रणनीति अपनाई कि वे भाजपा को मात देने में कामयाब रहे और इस जीत का पूरा श्रेय अहमद पटेल को ही गया। वहीं महाराष्ट्र में महाअघाड़ी गठबंधन की सरकार बनाने में अहमद पटेल की भी अहम भूमिका रही।

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