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राष्ट्रीय वैदिक सम्मेलन के वर्चुअल समारोह में बोले सीएम गहलोत- सुशासन देने के लिए वेदों को जानना जरूरी

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द एंगल।

जयपुर।

वेदों पर विस्तृत चर्चा करने के लिए राजस्थान में दो दिवसीय राष्ट्रीय वैदिक सम्मेलन का वर्चुअली आयोजन किया गया। कार्यक्रम में कला एवं संस्कृति विभाग के मंत्री डॉ. बीडी कल्ला, प्रमुख सचिव मुग्धा सिन्हा सहित अन्य विभागीय अधिकारी और विद्वतजन मौजूद रहे। कार्यक्रम के समापन के अवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी संबोधित किया।

स्वामी विवेकानंद के संदेश को आत्मसात् करने की जरूरत- सीएम गहलोत

कार्यक्रम की शुरुआत में स्वामी विवेकानंद को उनकी जयंती के अवसर पर याद करते हुए कहा कि इंदिरा गांधी जी के जमाने में राष्ट्रीय युवा दिवस घोषित किया गया था। संयोग की बात ये है कि जब पहली बार युवा दिवस मनाया गया, उस वक्त मैं थोड़े समय के लिए केंद्र में मंत्री था स्पोर्ट्स और युवाओं का। उसी वक्त राजीव गांधी जी ने इसका शुभारंभ किया था। स्वामी विवेकानंद के संदेश को आत्मसात हम करें ऐसे वक्त में, ये भी अपने आप में मैं समझता हूं कि मानवता के लिए भी, शांति के लिए, सद्भावना के लिए भी बहुत आवश्यक है क्योंकि जो हालात चलते हैं पूरे देश के अंदर शासन में तब लगता है कि अगर हम अपनी पुरानी परंपराओं को आत्मसात कर लें, तो जिसमें वेदों का अपना स्थान है, अपना संदेश है सदियों से प्राचीन काल से।

संस्कृत को बढ़ावा देने की दिशा में लगातार काम कर रहा है राजस्थान

मुख्यमंत्री ने वेदों का ज़िक्र करते हुए कहा कि खजाना इतना बड़ा है चारों वेदों का कि जितना ज्यादा हम लोग गहराई से जाते हैं, उतनी ही ज्यादा बातें सीखने को और आत्मसात करने को मिलती हैं, साथ ही कई तरह के अनुभव लेने का अवसर भी हमें मिलता है। मैं कई बार सोचता हूं कि सदियों से अगर ये वैदिक काल से ही वेदों का जो ये संदेश है, तो क्या कारण रहे होंगे कि आज हम लोग, प्राचीन काल से हम लोग वेदों को लेकर हम लोग ये ज्ञान संजोए हुए हैं, तो ये आगे क्यों नहीं बढ़ पा रहा है ?

सबको मालूम है कि राजस्थान में हम लोग हमेशा प्रोत्साहन देते हैं, हमने यहां पर वैदिक स्कूलें खोल रखी हैं, बांसवाड़ा के अंदर संस्थान चल रहा है और मेरा सौभाग्य है कि मेरे कार्यकाल में ही संस्कृत विश्वविद्यालय बना और हमारे कार्यकाल में ही आयुर्वेद विश्वविद्यालय बना और आयुर्वेद का संस्थान तो पहले से ही जयपुर के अंदर है तो ये जो जयपुर और राजस्थान हमेशा संस्कृत को बढ़ावा देने का काम करता है।

शासन चलाने वाले सभी लोगों को जाननी चाहिए वेदों की असल परिभाषा

वेदों का सुशासन में महत्व पर बात करते हुए सीएम गहलोत ने कहा कि शासन चलाने वाले लोग चाहे वो ब्यूरोक्रेट हों, चाहे वो पॉलिटीशियन हों, किसी पार्टी के हों, उन सबके ज़ेहन में बैठना चाहिए कि वास्तव में वेद की परिभाषा क्या है, वेद का संदेश क्या है और किस रूप में हम लोग अपनी जिंदगी में आत्मसात कर लें, जीवन में उतार लें। अगर जनता को सुशासन देना है और जनता को जोड़कर उनके सुख-दुःख में भागीदार बनना है और कोई सब्जेक्ट ऐसा नहीं है जो वेदों से अछूता रहा हो, तो ये समझ के बाहर है कि हम लोग इतने रिच हैं इस ज्ञान में, फिर भी हम लोग उसको पूरे देश के अंदर क्यों नहीं फैला पा रहे हैं ?

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाए जाने लगे अहिंसा दिवस और योग दिवस

अहिंसा पर बोलते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि जैसे गांधी का जो संदेश था अहिंसा का, वो संदेश भी अहिंसा का संदेश, आखिरकार संयुक्त राष्ट्र के अंदर उनको मानना पड़ा, जब यहां पर डॉ. मनमोहन सिंह जी ने और सोनिया गांधी जी ने यहां प्रस्ताव पास करवाया कि उनके जन्मदिवस को पूरी दुनिया मनाए अहिंसा दिवस के रूप में और वो अहिंसा दिवस आखिर में स्वीकृत हुआ संयुक्त राष्ट्र संघ में सर्वसम्मति से।

तो देश का मान-सम्मान बढ़ा कि हिंदुस्तान वो देश है जहां पर महात्मा गांधी जैसा महापुरुष पैदा हुआ जिसने अहिंसा के आधार पर मुल्क को आजाद करवा दिया और आज हमें कितना गर्व होता है कि पूरी दुनिया के मुल्क 2 अक्टूबर को अहिंसा दिवस मनाते हैं। योग की बात करें तो अभी हाल ही के वर्षों के अंदर संयुक्त राष्ट्र संघ में योग को भी मान्यता मिली और आज विश्व के अंदर योग दिवस मनाया जाता है।

वेदों के ज्ञान का देश-दुनिया में किया जाए प्रचार-प्रसार

मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि ये हमारे लिए गर्व की बात है कि हम वेद और वेदों की शिक्षा को, आज तो आईटी का जमाना है, राजीव गांधी का सपना था देश को नई शताब्दी में ले जाने का और उन्होंने जो क्रांति की है आईटी के सेक्टर में, आज इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के माध्यम से जो रिवॉल्यूशन हुआ है दुनिया के अंदर और देश के अंदर, आज हमारे हर हाथ में मोबाइल फोन है, इंटरनेट की सेवाएं हैं, कंप्यूटर हैं, दुनियाभर का ज्ञान जो है, वो आज आपको मुट्ठी में मिला हुआ है। आईटी के माध्यम से आप कोई भी सब्जेक्ट, कोई भी ज्ञान, कोई भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

तो जब ये क्रांति जो आई है, सोशल मीडिया का दुरुपयोग भी होता है और उपयोग भी होता है, तो हमारी कोशिश होनी चाहिए कि जो ज्ञान हमारे पास है, वो ज्ञान का प्रचार-प्रसार दुनिया के मुल्कों में हो जिससे कि दुनिया के अंदर, जो हम वसुधैव कुटुंबकम की बात करते हैं, तो ये अपने आप में एक संदेश है कि किस प्रकार से ये संदेश भी दुनिया तक पहुंचे।

वसुधैव कुटुम्बकम से पहले देश में हालात सुधारने की जरूरत

ये कोई मामूली बात नहीं है कि वसुधैव कुटुम्बकम की जो भावना है, ये हमारे जैसे मुल्क की मूल भावना है। भारतीय संस्कृति में यह अपना है या पराया है, उसका कोई स्थान नहीं है और कितनी बड़ी बात है, ये जो पूरा श्लोक लिखा हुआ है ‘अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥’, यानि ये अपना बंधु है, ये अपना बंधु नहीं है, इस तरह की बात छोटी सोच के लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों के लिए पूरा विश्व ही परिवार है और यही बात गांधी जी ने कही है, यही बात विनोबा भावे ने कही जय जगत, पूरे जगत की विजय हो और कहां हम छोटी-छोटी बातों में फंसे हुए हैं।

जय जगत की बात तो छोड़िए, आज कल तो हमारे अपने मुल्क के अंदर जो माहौल बनाया हुआ है, ऐसे माहौल में आप कैसे जय जगत की बात कर सकते हो ? कौन आपकी बात मानेगा ? दुनिया के मुल्क कहेंगे कि आप अपना घर संभालो पहले, आपके घर में क्या हो रहा है वो तो संभालो, फिर जय जगत की बात करो।

छुआछूत मानवता पर कलंक के समान- सीएम गहलोत

मुख्यमंत्री ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि संपूर्ण धरती ही परिवार के समान है, जिस मुल्क की भावना प्राचीन काल से ही सदियों से ही ये बनती आई हो, हम कल्पना कर सकते हैं कि हमें कितना गर्व होता है कि हमारे मुल्क के संस्कार कितनी सदियों से कैसे बने होंगे। आप देखिए कि जो कुरीति है देश के अंदर, अब छुआछूत की भावना है, आप बताइए कि छुआछूत की भावना मानवता पर कलंक है ये कि एक मानव मानव के साथ में छुआछूत की भावना रखे, इससे बड़ा कलंक क्या होगा ?

और अगर हम ये कलंक नहीं मिटाएंगे तो कैसे ये उपनिषद् की वेद की बातों को हम लोग दुनिया के मुल्कों तक पहुंचा सकते हैं ? कौन आपकी बात मानेगा ? आप बताइए जब स्वामी विवेकानंद शिकागो में गए थे, हम उसकी बात तो सब करते हैं, सब पॉलिटिकल पार्टी वाले करते हैं, तो उसको मानता कौन है ? खाली उनको कोट करने के लिए करते हैं।

स्वामी विवेकानंद के शिकागो सम्मेलन में दिए भाषण का किया ज़िक्र

स्वामी विवेकानंद के शिकागो सम्मेलन में हुए भाषण के बारे में बात करते हुए मुख्यमंत्री कहा कि स्वामी विवेकानंद ने उस जमाने के अंदर सांप्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता और हिंसा का मुद्दा बखूबी उठाया था। उन्होंने कहा था सांप्रदायिकता और कट्टरता लंबे वक्त से धरती को अपने में जकड़े हुए है और पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। अनेकों बार ये धरती खून से लाल हुई है, कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने ही देश नष्ट हुए हैं। ये सदियों की बात है तो जो विवेकानंद का संदेश जीवों में गूंजता है, आज भी गूंजता है, तो किस प्रकार हम युवा पीढ़ी को अच्छे संस्कार दे सकते हैं ये हमें देखना होगा। आज के दिन इस आयोजन को करने से ये मैसेज जाएगा, जो कि आज के समय की आवश्यकता है क्योंकि युवाओं के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है।

वेदों और स्वामी विवेकानंद के विचारों को आत्मसात करने के लिए आर्थिक मजबूती जरूरी

युवाओं के सामने अगर हम उनकी बात करते हैं तो जब तक, एक प्रकार से कहना चाहिए कि मन में शांति नहीं हो, तब तक कोई बात-विचार को आत्मसात करने में वो अक्षम रहता है और उसके लिए जरूरी है कि हम सामाजिक रूप से, आर्थिक रूप से मजबूत बनें। अगर देश में बेरोजगारी होगी, भुखमरी होगी, समस्याएं होंगी तो आप जो चाहते हैं वो नहीं कर पाएंगे। सबसे बड़ी समस्या आज देश के सामने युवाओं के लिए बेरोजगारी की भी है। उसके अच्छे संस्कार कैसे हों जो शांति, सद्भाव की बात वो सोच सकें, गांधी जी के बताए हुए रास्ते पर चलने के लिए संकल्प ले सकें सत्य-अहिंसा और ये तमाम बातें वेदों से निकली हुई हैं। अगर हम उस रूप में अपने मुल्क के अच्छे संस्कारों को मजबूत करना चाहते हैं, तो हमें इसके लिए प्रचार-प्रसार करना पड़ेगा।

संस्कृत शिक्षा में छात्रों की रुचि जागृत करना बेहद जरूरी

प्रदेश में संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार के प्रयासों पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि स्कूलें जो वेदों की बनी हुई हैं राजस्थान में उसका आवश्यक वहां हो सकता है। जब हम सबका कमिटमेंट वेदों के संदेश को लेकर है, तो मैं कहना चाहूंगा, कि कहां-कहां संभावनाएं हैं स्कूल खोलने की, किस प्रकार से बच्चे-छात्र आ सकते हैं, तो जब संस्कृत विश्वविद्यालय हमने खोला है, आयुर्वेद को हम लोग तरजीह दे रहे हैं, तो इसके मायने हैं कि इसके मूल उपनिषद् और वेद जो हैं, उनको लेकर क्यों नहीं हम लोग आगे और फैलाव कर सकते हैं। मैं समझता हूं कि जितना हम करें उतना कम है, जितना हम इस क्षेत्र में करें उतना कम है परंतु इसकी तरफ रुचि बढ़े छात्रों की, वो भी तो होना चाहिए, उसके बगैर तो संभव ही नहीं है कि आप स्कूल खोल दो।

छात्रों के बिना विश्वविद्यालय खोलने का कोई अर्थ नहीं- गहलोत

मैं उम्मीद करता हूं कि जो विश्वविद्यालय की बात की गई है, मैं समझता हूं कि संस्कृत विश्वविद्यालय खुला है, उस ढंग से कैसे हम इसकी तरफ आगे बढ़ें इसपर सरकार विचार करेगी। क्या ये संभावना है कि वेद विश्वविद्यालय खोलने से पहले जब तक स्कूल और कॉलेजेज नहीं खुलेंगी, तो वेद विश्वविद्यालय में कौन आकर क्या पढ़ाई कर पाएगा ? तो मुख्य है कि जैसे संस्कृत विश्वविद्यालय है, वहां भी तकलीफ आती है कि जब तक आपको छात्र नहीं मिलेंगे, तो विश्वविद्यालय कैसे क्या काम आएगा। हां, जो रिसर्च का काम है, जो शोध का काम है वो हम संस्कृत विश्वविद्यालय के माध्यम से भी कर सकते हैं वेदों के लिए और करते भी होंगे, और रिसर्च के लिए अगर बच्चे आगे आते हों छात्र, तो उनके लिए सरकार क्या प्रोत्साहन दे, वो एक बहुत बड़ा निर्णय होगा।

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