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राजस्थान विधानसभा में फिर गूंजा निजी स्कूलों की फीस वसूली का मुद्दा, बीजेपी विधायक बोले- विधानसभा में कानून लाए सरकार

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राजस्थान विधानसभा में शून्यकाल में स्थगन प्रस्ताव पर बोलते विधायक कालीचरण सराफ

The Angle

जयपुर।

राजस्थान विधानसभा में विपक्ष की ओर से सदन में रखे गए विभिन्न स्थगन प्रस्तावों पर चर्चा की गई। मालवीय नगर क्षेत्र से बीजेपी विधायक कालीचरण सराफ ने प्रदेश में निजी विद्यालयों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फीस वसूली के अंतरिम आदेश की अवहेलना कर अभिभावकों को परेशान किए जाने को लेकर सदन में स्थगन प्रस्ताव लगाया था, जिसे स्पीकर सीपी जोशी ने अनुमति दे दी।

कई स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर की गई केवल खानापूर्ति

इस दौरान चर्चा में शामिल होते हुए मालवीय नगर विधायक ने कहा कि कोरोना काल में स्कूलों में पढ़ाई नहीं करवाई गई, जबकि कुछ स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर केवल खानापूर्ति की गई। और स्कूल संचालकों की ओर से अभिभावकों पर पूरी फीस देने का दबाव बनाया गया। इसपर जब अभिभावकों ने राजस्थान हाईकोर्ट का रुख किया तो कोर्ट ने उनकी पीड़ा को समझते हुए स्कूलों को 60-70 पर्सेंट फीस लेने का आदेश दिया। इसके खिलाफ निजी स्कूल संचालक सुप्रीम कोर्ट गए। यहां कोर्ट ने अभिभावकों को 6 किश्तों में पूरी फीस चुकाने का आदेश दिया।

हाईकोर्ट ने केवल 60-70 पर्सेंट फीस वसूलने के दिए थे आदेश

लेकिन साथ ही यह भी निर्देश दिया कि यदि कोई अभिभावक आर्थिक परेशानी के चलते फीस नहीं जमा करवा सकता, तो उसके बच्चे को ऑनलाइन क्लास या परीक्षा से वंचित नहीं रखा जाए। इसके बावजूद निजी स्कूल अभिभावकों पर पूरी फीस देने का दबाव बना रहे हैं। इस संबंध में खुद विभाग को भी कई शिकायतें मिली हैं।जवाब- देखिए, ये अभिभावकों के साथ अन्याय है, कोरोना काल में लगभग 70 लाख विद्यार्थी निजी स्कूलों में पढ़ते हैं राजस्थान में और ये अधिकांश छोटे व्यापारी और निजी नौकरी करने वाले लोगों के बच्चे हैं और कोरोना में जिस प्रकार से उनकी आर्थिक स्थिति खराब हुई और वो ये भारी फीस देने में असमर्थ हैं और इसी कारण हाईकोर्ट ने कहा कि केवल साठ से सत्तर पर्सेंट फीस वसूल की जाए।

कालीचरण सराफ बोले- कानून बनाकर प्रदेश के अभिभावकों को राहत दे सरकार

उसके खिलाफ निजी स्कूलों के जो प्रबंधक थे वो सुप्रीम कोर्ट में गए और सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश दिया कि 6 किश्तों में ये फीस वसूल की जाए और यदि कोई अभिभावक फीस देने में असमर्थ है, तो न तो उसके बच्चे को ऑनलाइन-ऑफलाइन शिक्षा से वंचित किया जाए, न परीक्षा से वंचित किया जाए। लेकिन निजी स्कूल सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अधूरी व्याख्या करके टेलीफोन या अपने स्कूल के स्टाफ को विद्यार्थियों के घर पर भेजकर फीस चुकाने के लिए अनावश्यक दबाव बना रहे हैं।

इस संबंध में विभाग को कई शिकायतें मिली हैं, इसके बावजूद उनपर कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसलिए सदन में मौजूद शिक्षा मंत्री जी से मैं मांग करना चाहूंगा कि प्रदेश में 70 लाख ऐसे विद्यार्थी हैं, जो इससे परेशान हैं और जिस तरह निजी स्कूलों के प्रबंधक उनपर दबाव डाल रहे हैं, इससे अभिभावक मानसिक तनाव में हैं, सरकार इसमें हस्तक्षेप करे। इसके लिए यदि कोई विधेयक लाने की जरूरत हो, कानून बनाए जाने की आवश्यकता हो, तो अभी विधानसभा चल रही है, इसके लिए कानून भी बनाया जाए और प्रदेश के अभिभावकों को सरकार राहत प्रदान करे।

सोशल डिस्टेंसिंग-मास्क का नहीं रखा जा रहा ध्यान

वहीं स्कूलों में मिल रहे कोरोना संक्रमण के मामलों पर विधायक कालीचरण सराफ ने कहा कि कोरोना के कारण अभिभावक डरे हुए हैं और ये ऑनलाइन ही इसकी शिक्षा होनी चाहिए, ऑफलाइन जो अभी शिक्षा दे रहे हैं, वो गलत है और क्योंकि वहां न तो सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान दिया जा रहा है और न मास्क लगाने की अनिवार्यता रही, इसलिए इस प्रकार की घटनाएं हो रही हैं। यदि ऑफलाइन शिक्षा देनी भी है, तो वहां सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखना चाहिए और मास्क के बिना कोई एंट्री नहीं मिलनी चाहिए।

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