दा एंगल।
नई दिल्ली।
भारत में वित्तीय वर्ष की शुरुआत में ही चारों ओर सुस्ती का माहौल है। सभी उद्योग धंधों में सुस्ती छाई हुई है। त्यौहारी सीजन में इसमें कुछ सुधार नजर आया है। लेकिन अभी भी भारत के बाजार में सुस्ती का माहौल है। इससे उद्योग धंधों और दूसरे व्यवसाय पर बुरा असर देखने को मिल रहा है।
आर्थिक सुस्ती का असर रोजगार से लेकर कई क्षेत्रों में
आर्थिक सुस्ती के चलते औद्योगिक उत्पादन और रोजगार से लेकर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर बुरा असर पड़ा है। कई महीने तक ऑटोमोबाइल सेक्टर भी सुस्ती का सामना करता रहा। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी ने एक रिपोर्ट जारी कि है जिसमें बताया गया है कि स्लोडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ा है।
बेरोजगारी की दर में हुई वृद्धि
भारत में अक्टूबर में बेरोजगारी की दर बढ़कर साढ़े आठ प्रतिशत हो गई जो कि अगस्त 2016 के बाद सबसे ज्यादा है। यह सितंबर के मुकाबले भी 7.2 फीसदी ज्यादा है। सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक यह स्लोडाउन का असर है। इसके अलावा अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की तरफ से एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है, जिसके मुताबिक पिछले 6 सालों में करीब 90 लाख रोजगार के अवसरों में कमी आई है।
मैन्युफैक्चरिंग में भी गिरावट
इसके अलावा अक्टूबर में मैन्युफैक्चरिंग आउटपुट पिछले दो साल में सबसे स्लो रहा। आईएचएस इंडिया के पैकेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स में भी गिरावट देखी गई। यह सितंबर में 51.4 थी जो कि अक्टूबर में घटकर 50.6 हो गई। इसके अलावा कोयला, कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी प्रॉडक्ट, उर्वरक, स्टील, सीमेंट और इलेक्ट्रिसिटी उद्योग का प्रदर्शन पिछले 14 सालों में सबसे खराब रहा है। इसमें 5.2 प्रतिषत की कमी दर्ज की गई।
इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन के मुताबिक मुख्य उद्योगों के प्रॉडक्शन में भारी गिरवाट देखी गई। इसमें शामिल की गई कंपनियों का वेटेज इस सेक्टर में 40 फीसदी है। नया डेटा 11 नवंबर को जारी किया जाएगा।
अप्रैल-जून की तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 5 प्रतिशत दर्ज की गई जो कि 6 साल में सबसे कम है। जुलाई-सितंबर का डेटा 30 नवंबर में जारी किया जाएगा। निवेशकों के मुताबिक यह स्लोडाउन साल 2006 से भी लंबा है।