दा एंगल।
मुंबई।
सत्ता की लालसा अच्छे-अच्छे संबंधों को खराब कर देती है। चाहे रिश्ते नए हो या पुराने कुर्सी मिल जाए तो सब कुछ अच्छा नहीं तो सब बेकार। ऐसा ही कुछ हुआ है महाराष्ट्र में। शिवसेना चाहती है कि मुख्यमंत्री उनकी पार्टी का हो जबकि भाजपा कह रही है कि मुख्यमंत्री का पद तो उन्हीं के पार्टी को जाएगा। ऐसे में दोनों पार्टियों के रिश्ते में एक दीवार की खींच गई है।
भाजपा-शिवसेना की फूट का एनसीपी उठाएगी फायदा
वहीं इस मौके का फायदा एनसीपी उठाने चाहेगा। महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन के बाद सबसे ज्यादा सीटें एनसीपी के पास आई है। एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार ने 79 साल की उम्र में भी उन्होंने पार्टी को संभाला। दरअसल, 2014 की तुलना में बीजेपी की सीटें घटी हैं तो उसकी सहयोगी शिवसेना को भी न सिर्फ मनमाफिक सौदेबाजी करने का मौका मिल गया है बल्कि वह बीजेपी से अलग भी कुछ बड़ा सोचने की स्थिति में आ गई है।
शिवसेना को हर हाल में मुख्यमंत्री की सीट चाहिए चाहे इसके लिए चाहे उसे अपनी विरोधी पार्टी से हाथ ही क्यों ना मिलाना पड़े। इस समय के घटनाक्रम इसी ओर इषारा कर रहे हैं। पहले कांग्रेस के दिग्गज पृथ्वीराज चव्हाण का ऑफर, शिवसेना का बीजेपी को 50-50 के वादे की याद दिलाना, सामना में बीजेपी पर निशाना और फिर संजय राउत के कार्टून ने महाराष्ट्र की सरकार को लेकर कौतुहल पैदा कर दिया है।
मनचाहा पद नहीं मिला तो दोनों पार्टियां हो सकती अलग
दरअसल, बीजेपी की सहयोगी शिवसेना मुख्यमंत्री पद का मोह छोड़ नहीं पा रही है। विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद एक तरफ कांग्रेस गैर-बीजेपी सरकार बनाने की संभावनाओं पर काम कर रही है तो वहीं शिवसेना से संकेत मिल रहे हैं कि वह मनचाहा पद न मिलने पर अलग राह चुन सकती है। वैसे भी, चुनाव प्रचार के समय से ही शिवसेना कहती रही है कि एक दिन कोई शिवसैनिक सीएम की कुर्सी पर होगा।
उधर, वर्ली से जीते शिवसेना के आदित्य ठाकरे को उनकी पार्टी के लोग भावी सीएम के तौर पर प्रोजेक्ट भी करने लगे हैं। प्रचार के समय खबरें थीं कि उन्हें डेप्युटी सीएम का पद ऑफर किया जा सकता है। हालांकि बीजेपी कह रही है कि सीएम पद को लेकर कोई मतभेद नहीं है।