दा एंगल।
नई दिल्ली।
चीन को भारत से विवाद के बाद लगातार हर क्षेत्र में झटका लग रहा है। विश्व में ज्यादातर देशों ने चीनी उत्पाद से किनारा कर लिया है। चीन को विश्व में हर सैक्टर में भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। चीन की टेलिकम्यूनिकेशन कंपनी हुवावे पर अमेरिका ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के लिए जासूसी का आरोप लगाया और देश में कंपनी को बैन कर दिया। इसके बाद ब्रिटेन ने भी कंपनी को बैन कर दिया।
हुवावे को यूरोप मे नहीं मिली तवज्जो
यूरोप में हुवावे के टॉप एग्जिक्युटिव अब्राहम लिउ ने फरवरी में दावा किया था कि यूरोप में कंपनी के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा ताकि यूरोप के लिए 5जी को यूरोप में ही बनाया जाए। हालांकि, यूरोपीय सरकारें हुवावे के पब्लिक रिलेशन कैंपेन को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रही हैं। हाल ही में एक-एक कर देश 5जी नेटवर्क में उससे डील खत्म कर रहे हैं।
हुवावे की कोशिश है कि सिक्यॉरिटी एक्सपर्ट्स की चिंताओं की वजह से उसकी इमेज को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके। इसके लिए बड़े-बड़े इश्तेहार दिए जा रहे हैं जिनमें दावा किया जा रहा है कि दरअसल वह मेड इन फ्रांस है। सिक्यॉरिटी एक्सपर्ट्स और अब नेता भी दावा कर रहे हैं कि कंपनी की 5जी टेक्नॉलजी और दूसरे उपकरणों की मदद से चीन फ्रांस के अंदर सर्विलांस और जासूसी कर रहा है।
फ्रांस फिलहाल हुवावे को बैन करने के बारे में नहीं सोच रहा है लेकिन ऑपरेटरों को उसका इस्तेमाल नहीं करने के लिए कहा जा रहा है। जो ऑपरेटर पहले से उसके साथ डील कर चुके हैं, उन्हें 8 साल की इजाजत दी गई है। जर्मनी में इसे लेकर आमराय नहीं बन सकी है। चांसलर एंजेला मर्केल हुवावे को किसी दबाव में बैन नहीं करना चाहती हैं लेकिन विपक्ष और उनकी पार्टी के नेताओं का भी कहना है कि समय रहते खतरों को समझना होगा।
बंटा हुआ है यूरोपस्पेन, हंगरी, आयरलैंड और स्वीडन हुवावे से सिक्यॉरिटी का कोई खतरा नहीं मानते नहीं हैं जबकि डेनमार्क में बिना हुवावे का नाम लिए सुरक्षा की चिंता जताई गई और हुवावे की जगह एरिसन को चुना गया। रोमानिया, पोलैंड, चेक रिपब्लिक, लातविया और एस्टोनिया ने अमेरिका के साथ जॉइंट स्टेटमेंट साइन कर लिए हैं।