Home Society सरकार के भरोसे नहीं हैं इंजीनियर मनोज वाधवा, खुद उठाया इस बात...

सरकार के भरोसे नहीं हैं इंजीनियर मनोज वाधवा, खुद उठाया इस बात का बीड़ा !

535
0

The Angle

चंडीगढ़।

अगर हम या हमारा कोई परिवारजन किसी दुर्घटना में अपनी जान गंवा देता है तो हम उसका ठीकरा जिम्मेदारों के सिर फोड़ने लगते हैं। लेकिन जब बात फरीदाबाद के मनोज वाधवा की आती है तो शोमेन राजकपूर के गीत की ये लाइनें खुद ब खुद याद आ जाती हैं, किसी का दर्द मिल सके तो लें उधार, जीना इसी का नाम है। जी हां,स इंसानियत उसी का नाम है जो दूसरों के लिए जीए। दूसरों की भी चिंता करे। अपने दु:ख दर्द भूलकर जब इंसान दूसरों के लिए नेक काम करने लगता है, तो वह असल इंसान होने का दर्जा पा पाता है।

दरअसल मनोज वाधवा के 3 साल के बेटे की मौत एक सड़क हादसे में हो गई थी। ऐसे में बजाय प्रशासन को कोसने के, उन्होंने एक अनूठी पहल शुरु की। मनोज ने अब खुद ही सड़क के गड्ढों को भरना शुरू कर दिया है, ताकि और किसी को सड़क के गड्ढों की वजह से हादसों में अपनी जान न गंवानी पड़े।

 

मनोज ने 6 साल पहले सड़क हादसे में खोया बेटा

बात 6 साल पहले की है जब मनोज वाधवा के 3 साल के बेटे की दिल्ली- आगरा हाइवे पर हुए एक हादसे में मौत हो गई थी। हादसे का मुख्य कारण सड़क का एक गड्ढा था, जो पानी से भरा हुआ था, जिसकी वजह से दुर्घटना हुई। तब से मनोज खुद ही सड़क के गड्ढों को भरने का काम कर रहे हैं।

 

कई लोग जुड़ते गए साथ

सड़क के गड्ढों को भरने के लिए उन्होंने कुछ ट्यूटोरियल्स भी पढ़े। मुंबई के ‘पॉटहोल वॉरियर्स’ और बेंगलुरु के ‘पैथहोल राजा’ जैसे एनजीओ से भी मदद ली। अब इस नेक काम में मनोज अकेले नहीं हैं। वाधवा की टीम सड़क पर जिस जगह गड्ढा होता है, पहले उसे चिन्हित करती है। फिर उसकी सफाई की जाती है। इसके बाद गड्ढे को भरा जाता है।

 

गणतंत्र दिवस के दिन भरे गड्ढे

71वें गणतंत्र दिवस के मौके पर वाधवा ने फरीदाबाद की सड़कों के गड्ढों को भरने का काम किया। उन्होंने कहा, ‘हमने इस काम को करने के लिए खासतौर पर गणतंत्र दिवस को चुना। ताकि सरकारी एजेंसियों को नींद से जगाया जा सके। यदि कुछ लोग मिलकर इन सड़कों को गड्ढों से मुक्त बना सकते हैं, तो सरकार और ठेकेदार तमाम संसाधन होने के बावजूद ऐसा करने में प्रशासन विफल क्यों है ?’

 

बेटे के बारे में भी बोले

10 फरवरी 2014 की बात है। दिल्ली-आगरा हाइवे पर हुए हादसे में उनके बेटे पवित्र का देहांत हो गया। उन्होंने कहा, ‘अगर वो आज होता तो 9 साल का होता। सरकारी एजेंसियों के नाकारापन की वजह से हमारी खुशियां तबाह हो गईं। मैं नहीं चाहता कि और किसी के साथ ऐसा हो। अब सड़कों के गड्ढे भरना मेरे जीवन का मिशन है। भले ही मुझे अन्य लोगों से इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए समर्थन मिले या ना मिले।’

 

सीने पर लगा था पत्थर

मनोज बताते हैं कि जब यह हादसा हुआ, तो वे अपनी पत्नी और बेटे पवित्र के साथ एक शादी समारोह से बाइक पर वापस घर लौट रहे थे। उन्होंने कहा, ‘पवित्र मेरे और मेरी पत्नी के बीच बैठा था। मैंने सड़क पर एक जगह पानी भरा देखा और अचानक ब्रेक लगा दी। बाइक का बैलेंस बिगड़ गया। ऐसे में पवित्र गड्ढे के पास पड़े नुकीले पत्थर पर गिर गया। जो कि उसके सीने पर लगा। वहीं दूसरी ओर से आ रहा एक अन्य वाहन के पहिए ने पत्नी का पैर कुचल दिया। जब बेटे को लेकर अस्पताल पहुंचा, तो डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।’ मनोज वाधवा जैसे लोग एक मिसाल हैं। जो अपने दु:ख से उबरने के साथ-साथ दुनिया के लिए भी नेक काम कर रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here