द एंगल।
कानपुर।
आज कल किसान खेतों में अच्छी पैदावार के लिए उन्नत खेती तकनीकों को अपना रहे हैं। अच्छी किस्म के बीज और खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन खेतों में पानी देने के लिए कई किसान आज भी पारंपरिक तरीकों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे खेतों में दिए जाने वाले पानी की बर्बादी हो रही है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी किसानों को खेतों में फव्वारा और ड्रिप पद्धति के ज़रिए सिंचाई करने की सलाह देते हैं। ताकि पानी का समुचित उपयोग किया जा सके, और कम पानी में भी अच्छी फसल ली जा सके। लेकिन अब खेतों में होने वाली पानी की बर्बादी को रोकने के लिए अंतरिक तकनीक का सहारा भी लिया जाएगा।
कानपुर के गांवों पर एक साल तक किया शोध
दरअसल अब फसल के तापमान के ज़रिए पता लगाया जाएगा कि अभी सिंचाई की जरूरत है या नहीं। आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत कानपुर के गांवों पर एक साल तक शोध किया और डाटा एनालिसिस के बाद एक विस्तृत मैप तैयार किया है।
आईआईटी कानपुर और लीसेस्टर विश्वविद्यालय, यूके मिलकर कर रहे काम
इसके आधार पर फसलों में पानी की मात्रा तय की जाएगी। आईआईटी कानपुर और लीसेस्टर विश्वविद्यालय, यूके के वैज्ञानिक थर्मल इमेजिंग आधारित ड्रोन पर प्रयोग कर रही है। वैज्ञानिकों की टीम संस्थान के नजदीक बनी और बंसेठी गांव में प्रयोग कर रहे हैं।
फसलों में सिंचाई के लिए हो रहा 80 फीसदी पानी का इस्तेमाल
गांव में चल रहे प्रयोग को देखने कल मंगलवार को आईआईटी कानपुर और यूके के वैज्ञानिकों के साथ उत्तर प्रदेश के संयुक्त निदेशक नीरज श्रीवास्तव भी पहुंचे। आईआईटी कानपुर के अर्थ साइंस विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर राजीव सिन्हा ने बताया, कि देश में 80 फीसदी पानी का उपयोग खेती में किया जा रहा है, जबकि इसकी जरूरत नहीं है।
पायलट प्रोजेक्ट में कामयाबी मिलने पर बड़े स्तर पर तैयार करने की योजना
उन्होंने कहा कि शोध के तहत आईआईटी के वैज्ञानिकों ने खेतों में जाकर मिट्टी से लेकर फसल का तापमान, आर्द्रता सहित अन्य जरूरी रिकॉर्ड दर्ज किए। प्रो. सिन्हा के मुताबिक दोनों डाटा का एनालिसिस करने के बाद एक मैप तैयार किया गया है। इस मैप के अनुसार अगर खेती की जाए, तो पानी की तो बचत होगी ही, साथ ही पैदावार भी अच्छी होगी। पायलट प्रोजेक्ट में कामयाबी मिलने के बाद इसे बड़े स्तर पर करने की तैयारी है।