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आधुनिकता की दौड़ में पीछे छूटे जीवन के मूल्य

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दा एंगल।
जयपुर।
रिश्ते नाते, प्यार मोहब्बत आजकल सिर्फ नाम के रहे गए हैं। आधुनिक की इस दौड़ में रिश्ते-नातों की कोई जगह ही नहीं है। हर रिश्ते आजकल सिर्फ मतलब के हो गए हैं। अगर आपके पास धन-दौलत है या आप किसी अच्छे पद पर है तो सभी लोग आपको पूछेंगे और आपको सलाह देने भी आ जाएंगे।

टूटते संयुक्त परिवार

यदि आप के पास दोनों ही नहीं है और कितने भी काबिल हो कोई आपको नहीं पूछेगा। आधुनिकता की इस दौड़ में सब अंधे हो गए हैं। इस आधुनिकता की वजह है कि कल तक जो संयुक्त परिवार में रह रहे लोग आज अलग-अलग हो गए हैं। आज के बच्चे चार अक्षर क्या पढ़ लेते हैं वो अपने आपको अधिक ज्ञानी मानने लग जाते हैं। उनको हर तरह के ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। बड़े जो उनको कुछ कहते हैं तो अपने वो अपनी जनरल नाॅलेज लगाए और उनकी बातों का खंडन करना शुरू कर देंगे चाहे वो बात उनके मतलब की ही क्यों ना हो।

अपनी संस्कृति से दूर होते लोग

आधुनिक होना अच्छी बात है, लेकिन आधुनिकता का यह मतलब नहीं होता है कि आप अपने संस्कार भूल जाए। जो मां-बाप आपकी तालीम के लिए सब कुछ करते हैं। तालीम लेते ही उनको भूलने लग जाते हैं। हिन्दी सिनेमा लोगों को ज्ञान देने का एक अच्छा माध्यम है।

लोग जो कुछ भी फिल्म में देखते हैं उसको अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं। लेकिन आजकल सिनेमा में पहले के मुकाबले अधिक गिरावट आई है। आज उनके पास ऐसा कोई सब्जेक्ट ही नहीं रहा जो वो समाज को कुछ ज्ञान दे सके।

रही कहीं कसर आजकल के नए ग्रेजेट ने पूरी कर दी है। बच्चे पढ़ने लिखने की जगह मोबाइल फोन, इंटरनेट पर अधिक चिपके रहते हैं। कभी भी बच्चों से बात करें तो हमेषा मोबाइल पर चैटिंग करते हुए नजर आ रहे है। इस तरह बच्चे अपने संस्कृति से दूर और पाष्चात्य संस्कृति के रंग में अधिक रंगे नजर आने लगे हैं। ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन वो अपनी संस्कृति से दूर हो जाएंगे। जो इस देश, समाज और सोसायटी के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं रहेगा।

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