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मुंबई में आखिर क्यों अकेले पड़े सीएम देवेंद्र फडणवीस

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दा एंगल।
मुंबई।
राजनीति एक ऐसा अखाड़ा है जहां हर कोई अपने आपको पहलवान समझता है। ऐसा ही एक अखाड़ा बन गया महाराष्ट्र में सीएम की कुर्सी का। जहां ना तो भाजपा झुक रही और ना ही शिवसेना। दोनों ही पार्टियां अपने ही उम्मीदवाद को सीएम बनाना चाहती है। ऐसे में महाराष्ट्र में अजीब सी स्थिति बन गई है।
महाराष्ट्र में चुनाव नतीजे आए करीब 10 दिन बीत चुके हैं, लेकिन सरकार गठन को लेकर बीजेपी और शिवसेना में कोई सहमति नहीं बन सकी है। इस सबके बीच महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस पसोपेश की स्थिति में फंस गए हैं। अब तक यह साफ नहीं है कि बीजेपी हाईकमान ने फडणवीस को शिवसेना के साथ डील के लिए अधिकृत किया है या फिर वह अपनी ही स्थिति को बचाने में जुटे हैं।

देवेंद्र फडणवीस दे रहे शिवसेना को जवाब

शिवसेना के मुखिया उद्धव ठाकरे लगातार यह कह रहे हैं कि बीजेपी ने चुनाव से पहले 50-50 फॉर्मूेले की बात कही थी। यानी ढाई-ढाई साल का सीएम। दूसरी तरफ बीजेपी चीफ अमित शाह इस मुद्दे पर अब तक चुप हैं। अब तक बीजेपी की ओर से देवेंद्र फडणवीस ही शिवसेना को जवाब देते रहे हैं। अब तक फडणवीस अपने इरादों पर अडिग रहे हैं। वह संकेत देते रहे हैं कि उनके बयानों को दिल्ली का भी समर्थन है। लेकिन, सूबे में सरकार गठन की आखिरी तारीख 8 नवंबर है और यदि तब तक सरकार का गठन नहीं होता है तो फिर उनके अकेले रह जाने का संकेत जाएगा।

उम्मीद से कम आई सीटें

चुनाव नतीजों के एक दिन बाद ही एक युवा बीजेपी लीडर से पूछा गया था कि आपका फ्यूचर प्लान क्या है। उस नेता के जवाब ने यह संकेत दे दिया था कि बीजेपी को 130 से 140 सीट की बजाय 105 ही मिलने से क्या फडणवीस की पोजिशन में बदलाव आ गया है। युवा नेता ने कहा था, पसोपेश में हूं कि नागपुर जाऊं या फिर पुणे। नागपुर देवेंद्र फडणवीस का गृह जिला है, जबकि बीजेपी के स्टेट चीफ चंद्रकांत पाटील पुणे के रहने वाले हैं। पाटील को देवेंद्र फडणवीस का सबसे बड़ा चैलेंजर माना जाता है।

चुनाव के प्रचार के दौरान दिया था पुन्हा मीच का नारा

गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान देवेन्द्र फडणवीस ने पुन्हा मीच का नारा दिया था, जिसका अर्थ है, मैं ही दोबारा। मोदी स्टाइल के इस कैंपेन के चलते वह प्रचार में अलग-थलग नजर आए थे। नतीजे आए तो सीटें अनुमान से कम रहीं और उनके पास ऐसे दोस्त नहीं थे, जो शिवसेना के साथ डील कर सकें। यही नहीं दिल्ली से भी उन्हें उम्मीद के मुताबिक समर्थन नहीं मिल रहा है और फिलहाल वह अकेले खड़े नजर आ रहे हैं।

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