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विश्व जल दिवस आज, निरंतर बढ़ती जा रही संरक्षण की महत्ता

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विश्व जल दिवस

The Angle

जयपुर।

आज विश्व जल दिवस है और पानी का महत्व रेगिस्तानी क्षेत्र के वासियों से बेहतर शायद ही कोई जानता हो। यहां केंद्र और राज्य सरकारों के तमाम प्रयासों के बावजूद हालात ये हैं कि कई किलोमीटर चलकर रेगिस्तान की तपती धरती को चीरकर पानी लाना पड़ता है। दार्शनिक थेल्स ने भी सैकड़ों सालों पहले ही पानी को लेकर भविष्य में बनने वाली स्थिति को लेकर चेता दिया था और कहा था कि जल ही समस्त भौतिक वस्तुओं का कारण और सभी प्राणियों के जीवन का आधार है। लेकिन अभी लोग इस बात को महत्व नहीं दे रहे हैं। ये समस्या आने वाले समय किस कदर गंभीर हो गई, इसका अंदाज़ा इससे भी लगाया जा सकता है कि 1992 से 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाए जाने का ऐलान किया गया।

जल से जुड़े रोचक तथ्य-

  • ब्रश करते समय नल खुला छोड़ देने पर पांच मिनट में करीब 20-25 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है।
  • भारत में महिलाएं पीने के पानी के लिए औसतन साढ़े 6 किमी का पैदल सफ़र तय करती हैं।
  • दिल्ली, मुंबई और चेन्नई में पाइप लाइनों के वॉल्व खराब हो जाने से 17-40 फीसदी पानी बेकार बह जाता है।
  • दुनिया में 10 में से 2 लोगों को पीने के लिए स्वच्छ पानी नहीं मिल पाता।

राजस्थान के गांव आज भी दे रहे जल संरक्षण की सीख

भू जल वैज्ञानिक नारायण दास इणखिया के अनुसार पुराने समय में भी पानी का अधिक महत्व था। पानी को लेकर यहां एक कहावत थी कि ‘घी सस्ता और पानी मंहगा’। ऐसे में यहां के लोग पानी का कुशलता से उपयोग करते थे, जिसमें नहाने के पानी से कपड़े धोना और कपड़े धोने के बाद बचे हुए पानी को पौधों में देना शामिल था। ताकि पानी व्यर्थ नहीं जाए। लेकिन आज परम्परागत जल स्त्रोतों की अनदेखी की जा रही है और वनों की कटाई के कारण पर्यावरण पर उलटा असर पड़ रहा है, जो कि चिंता का विषय बना हुआ है। राजस्थान के उन 66 गांवों से जल बचाने की सीख ले सकते हैं, जो कुछ साल पहले तक भीषण जल संकट का सामना कर रहे थे। लेकिन बाद में गांववालों के अथक प्रयासों की बदौलत तस्वीर बदली और गांव खुद ही अपने लिए पर्याप्त पानी की पूर्ति करने लगा।

चिड़ावा गांव में लोगों ने अपने घरों में बनवा रखे हैं टांके

राजस्थान के झुंझुनू का चिड़ावा के लोग पानी के लिए सिर्फ सरकार पर ही निर्भर नहीं हैं। यहां के इस्माइलपुर गांव के सभी 145 घरों में 13 फीट गहरे अंडरग्राउंड टैंक (टांका) बनाए गए हैं। जिनमें 20 हजार लीटर तक बारिश का पानी इकट्ठा किया जा सकता है। इनको देखकर दूसरे 66 गांवों ने भी इस तरह टैंक बनाने का काम किया। गंदा पानी टांके में न जाए, इसके लिए पॉप-अप फिल्टर लगाया जाता है, जिससे पानी का कचरा अलग हो जाता है।

भूजल रीचार्ज के किए जा रहे प्रयास

राजस्थान के कई जिलों में जलस्तर तेजी से गिरता जा रहा है। एक वैज्ञानिक शोध में पाया गया कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो 2045 तक पूरे क्षेत्र में पानी की कमी हो सकती है। इसे देखते हुए लोगों ने भूजल रीचार्ज की दिशा में भी काम करना शुरू कर दिया है। इसके लिए 63 पुनर्भरण कुंए खोदे गए, जो सभी घरों से जुड़े हुए हैं। टांके के ओवरफ्लो हो जाने के बाद जो पानी बह जाता है, वह पाइपों के जरिए पुनर्भरण कुओं में पहुंच जाता है। इससे करोड़ों लीटर पानी इकट्ठा किया जाता है। जिससे भूजल स्तर सामान्य तौर पर स्थिर हो जाता है। इससे इन कुओं के पास बने बोरवेल के जलस्तर में बढ़ोतरी देखी गई।

सोक पिट से भी मिल रही मदद

यह पानी बचाने की मुहिम की एक और बड़ी प्रक्रिया है। इसमें घरों से निकलने वाले पानी को सोख्ता में इकट्ठा किया जाता है। गांवों में 3 हजार से ज्यादा सोख्ता बनाए गए हैं। इससे भी भूजल रिचार्ज करने में आसानी से बढ़ोतरी देखने को मिली है। इसके लिए लोगों ने अपने घर में 19 फीट का गड्ढा खोदा। इसमें 3 फीट व्यास के 15 सीमेंटेड रिंग बना दिए। जिसमें वे किचन और बाथरूम से निकलने वाले पानी को इकट्ठा करते हैं। इसके तहत पीजोमीटर से जब पानी का लेवल नापा गया तो अपेक्षाकृत सुधार देखने को मिला।

नोएडा बना जीरो डिस्चार्ज वाटर सिटी

नोएडा पिछले कुछ समय में ही जीरो डिस्चार्ज सिटी बन गया है। नोएडा अथॉरिटी ने नोएडा सेक्टर 168 में स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ने अपनी क्षमता 50 मिलियन लीटर प्रतिदिन से बढ़ाते हुए 100 मिलियन लीटर कर ली है। अथॉरिटी के अनुसार उसने सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) से निकाले गए पानी को 100% रिसाइकल करने का फैसला किया था, जिसे पूरा कर लिया गया है। इससे नोएडा जीरो डिस्चार्ज सिटी बन गया है।

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