द एंगल
मुम्बई।
हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता और निर्देशक राज कपूर का आज जन्मदिन है। राज कपूर ने अपने द्वारा निभाए हर एक किरदार को पर्दे पर एक अलग अंदाज में पेश किया। जिससे हर कोई उनका दिवाना हो गया। भारत में अपने समय के सबसे बड़े शोमैन थे। सोवियत संघ और मध्य-पूर्व में राज कपूर की लोकप्रियता दंतकथा बन चुकी है। उनकी फिल्मों खासकर श्री 420 में बंबई की जो मूल तस्वीर पेश की गई है, वह फिल्म निर्माताओं को अभी भी आकर्षित करती है। राज कपूर की फिल्मों की कहानियां आमतौर पर उनके जीवन से जुड़ी होती थीं और अपनी ज्यादातर फिल्मों के मुख्य नायक वे खुद होते थे।
महज 11 वर्ष से हिंदी सिनेमा में की अभिनय की शुरुआत
सन् 1935 में मात्र 11 वर्ष की उम्र में राजकपूर ने फिल्म इंकलाब से अभिनय की शुरूआत की। उस समय के प्रसिद्ध निर्देशक केदार शर्मा ने राज कपूर के भीतर के अभिनय क्षमता और लगन को पहचाना और उन्होंने राज कपूर को सन् 1947 में अपनी फिल्म नीलकमल में नायक की भूमिका दे दी।
नायक के रूप में राज कपूर का फिल्मी सफर हिन्दी सिनेमा की वीनस मानी जाने वाली सुप्रसिद्ध अभिनेत्री मधुबाला के साथ आरंभ हुआ। 1946-47 में प्रदर्शित केदार शर्मा की नीलकमल तथा मोहन सिन्हा के निर्देशन में बनी चित्तौड़ विजय और दिल की रानी तथा 1948 में एन॰एम॰ केलकर द्वारा निर्देशित अमर प्रेम में भी मधुबाला ही राज कपूर की नायिका थी।
नरगिस के अतिरिक्त मधुबाला के साथ ही राज कपूर ने सबसे अधिक फिल्मों में नायक की भूमिका की है। परंतु, इनमें सफल केवल नीलकमल ही हुई। अन्य फिल्मों की असफलता के कारण उन्हें भुला दिया गया। 1948 में प्रदर्शित आग वह पहली फिल्म थी जिसमें अभिनेता के साथ साथ निर्माता-निर्देशक के रूप में भी राज कपूर सामने आये। हालाँकि यह फिल्म सफल नहीं हो पायी।
आग के प्रदर्शन के साथ ही राज कपूर की छवि एक विवाद ग्रस्त व्यक्तित्व के रूप में बनी। आग स्थापित परम्पराओं का अनुकरण नहीं करती थी, किन्तु वह अपनी अलग पहचान भी नहीं बना सकी। श्आगश् के बाद 1949 में राज कपूर बरसात फिल्म में अभिनेता के साथ-साथ निर्माता-निर्देशक के रूप में भी पुनः उपस्थित हुए और इस फिल्म ने सफलता का नया मानदंड कायम कर दिया। सन् 1970 के दिसंबर में आर॰के॰ फिल्म्स की अपने समय की सबसे महँगी फिल्म मेरा नाम जोकर अखिल भारतीय स्तर पर एक साथ प्रदर्शित हुई। यह राज कपूर के जीवन की सबसे महत्त्वाकांक्षी फिल्म थी।
राज कपूर के साथ ही भारतीय सिनेमा के एक युग का हुआ अंत
1987 में शो मैन को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें कला के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1971 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। 2 जून 1988 को राज कपूर का निधन होने से भारतीय सिनेमा के एक युग का भी अंत हो गया।