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    क्या दुनिया में अब पश्चिम की बजाय पूर्व ताकत का केंद्र बनता जा रहा है

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    बीते शनिवार को दुनिया की सात बड़ी आर्थिक ताकतों के संगठन जी-7 की बैठक इस समूह में बिखराव और आपसी कड़वाहट के बीच खत्म हो चुकी है. इस आयोजन के बीच एक कुर्सी पर बैठे हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को समझाइश देती लग रहीं जर्मनी की चांसलर अंगेला मर्केल की तस्वीर भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई है. यह तस्वीर भी जी-7 की बैठक के नतीजे का इशारा समझी जा रही है.

    वहीं सात से 10 जून के बीच चीन के चिंगदाओ में आठ देशों के समूह शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक भी हुई है. रूस, चीन, भारत और पाकिस्तान के साथ मध्य एशिया के चार देशों के इस क्षेत्रीय समूह की बैठक में आमंत्रित सदस्यों के रूप में ईरान और अफगानिस्तान शामिल हुए थे. जी-7 की बैठक के उलट इस बैठक के बाद सर्वसहमति से एक संयुक्त घोषणापत्र भी जारी हुआ है. इसमें हठधर्मिता दिखाने के लिए अमेरिका की आलोचना करते हुए नियम-कायदों पर आधारित विश्व व्यवस्था की हिमायत की गई है.

    कनाडा में आयोजित जी-7 की इस बैठक में डोनाल्ड ट्रंप ने कोशिश की थी कि रूस को शामिल करके इस समूह को ‘जी-7 प्लस 1’ बना दिया जाए. हालांकि बाकी देशों का उनके इस प्रस्ताव पर बड़ा ही ठंडा रवैया रहा. लेकिन यूरोप और एशिया को जोड़ने वाली ताकत रूस फिलहाल एससीओ का सदस्य बनकर संतुष्ट है. यह इस बात का भी प्रतीक है कि अब ताकत का केंद्र पश्चिम के बजाय पूर्व की तरफ खिसक रहा है. इसी बदलाव के लिए कहा जाता है कि यह शताब्दी एशिया की शताब्दी होगी.

    एससीओ के संयुक्त घोषणापत्र में सीधे-सीधे अमेरिका का नाम नहीं लिया गया है, लेकिन इसमें ईरान परमाणु समझौते का समर्थन किया गया है. चीन और रूस इस समझौते का हिस्सा हैं, जबकि अमेरिका इससे अलग हो चुका है.

    इस घोषणापत्र में एक-तरफा संरक्षणवाद की आलोचना करते हुए विश्व व्यापार संगठन का समर्थन किया गया है. इस आधार पर कहा जा सकता है कि डोनाल्ड ट्रंप के संरक्षणवादी कदमों की जी-7 के साथ-साथ एससीओ के देशों ने भी आलोचना की है.

    हालांकि एससीओ के देशों ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर के दबदबे की चुनौती देने की बात सीधे नहीं कही, लेकिन यह तय किया है कि वे आपसी व्यापार अपनी-अपनी मुद्राओं में करेंगे. यह फैसला इस लिहाज से काफी अहम माना जा सकता है कि इन देशों की जीडीपी, पूरी दुनिया की कुल जीडीपी का पांचवां हिस्सा है.

    इन बातों के अलावा घोषणापत्र में अमेरिका द्वारा कोरियाई प्रायद्वीप में एंटी-मिसाइल सिस्टम तैनात करने के प्रस्ताव पर चीन की चिंता को जगह मिली है और सीरियाई शासन को अस्थिर करने की कोशिशों पर रूस के विरोध को भी तवज्जो दी गई है.

    भारत को छोड़कर एससीओ के सभी देशों ने चीन की बेल्ट और रोड परियोजना (ओबॉर) का समर्थन किया है. इसके पाक अधिकृत कश्मीर से गुजरने पर भारत शुरू से आपत्ति जताता रहा है. इसके बावजूद एससीओ ऐसा मंच है, जहां भारत इन देशों के साथ कई अन्य मोर्चों पर साझेदारी निभा सकता है.

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