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    क्यों प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आपातकाल के लिए पूरे गांधी परिवार को जिम्मेदार ठहराना सरासर गलत है

    परसों यानी आपातकाल की बरसी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधी परिवार पर तीखा हमला बोला था

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    नरेन्द्र मोदी का 26 जून का मुंबई में हुआ भाषण उनके अधिकतर भाषणों की तरह तीखा और केन्द्रित था. आपातकाल के लिए कांग्रेस और नेहरू-गाँधी परिवार पर एक गंभीर हमले से शुरूआत करते हुए मोदी ने कहा कि देश को “उस परिवार के स्वार्थी व्यक्तिगत हित” के लिए “जेल” में तब्दील कर दिया गया था.

    पहले स्तर पर, मोदी का उद्देश्य आपातकाल के दलदल को एक राजनीतिक मोड़ के रूप में उपयोग करना और विपक्षी दल द्वारा अफवाहों भरे अभियान (विरोध) का सामना करना है जिसमें विपक्षी दल ने सरकार पर देश में “अविकसित आपातकाल” लगाने का आरोप लगाया है.

    दूसरे स्तर पर, प्रधानमंत्री को विपक्षी दलो के पदाधिकारियों के बीच इससे मनमुटाव पैदा करना चाहते हैं क्योंकि इन पार्टियों की बड़ी संख्या (उनके पहले के अवतारों में) ने इंदिरा गाँधी के कट्टरपंथी शासन का विरोध किया था.

    हर कोई समर्थक नहीं था

    हालांकि, मोदी की टिप्पणी की एक गहरी जाँच की आवश्यकता है. मुंबई के कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि आपातकाल लगाते समय संविधान का दुरूपयोग “एक परिवार” के लिए किया गया था.

    एक पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा ट्रुथ, लव एंड ए लिटिल मेलिस (पेंगुइन इंडिया 2002, पृष्ठ 287) में लिखा है कि राजीव और सोनिया गांधी दोनों को इंदिरा का आपातकाल लगाने का विचार पसंद नहीं था.

    खुशवंत सिंह, जिन्हें 1970 के दशक में इंदिरा, संजय और मेनका गाँधी का करीबी माना जाता था, ने देखा, ”एक बार जब राजीव और सोनिया अपने एक बच्चे का जन्मदिन मना रहे थे मैं वहीं (इंदिरा के आवास, 1, सफदरगंज मार्ग, नई दिल्ली) था. मैने ध्यान दिया कि दोनों भाई और उनकी पत्नियाँ कमरे के दो अलग-अलग छोरों पर थे और उन्हें एक दूसरे से कुछ ख़ास लेना-देना नहीं था।“

    खुशवंत की बातों से यह स्पष्ट हो जाता है कि आपातकाल सहित कुछ मुद्दों पर गाँधी परिवार की दो शाखाएं “एक” नहीं थीं.

    1993 में, जब बतौर एएनआई संवाददाता मैंने भुवनेश्वर की यात्रा की, तो बीजू पटनायक ने एक एक घंटे तक बताया के कैसे सोनिया गाँधी ने उनके बेटे नवीन (ओडिशा के वर्तमान मुख्यमंत्री) से मुलाकात की थी और 21 महीने के आपातकाल के दौरान अपने पिता की गिरफ्तारी पर उनके साथ सहानुभूति व्यक्त की थी.

    बीजू ने सोनिया को यह कहते हुए उद्धृत किया, “यह आपके लिए बहुत ही दर्द भरा होगा कि आपके पिता जेल में हैं. मैं उसके लिए माफी माँगती हूँ. “ विनिमय के समय नवीन और सोनिया दोनों ही राजनीति में सक्रिय नहीं थे. मैंने अपनी पुस्तक सोनियाःएक बायोग्राफी (पेंगुइन 2003) में इस घटना का उल्लेख किया था.

    अतिरेक के लिए कीमत चुकाई

    इंदिरा-संजय के खिलाफ बढ़ती हुई आलोचना के परिणामस्वरूप आपातकाल को हटाए जाने के तुरंत बाद जनता पार्टी ने कांग्रेस को नीचा दिखाया.

    यहां तक ​​कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में देव कंट बरूआ जिन्होंने ‘इंदिरा इज इंडिया-इंडिया इज इंदिरा’ का नारा बनाकर खुद को अमर कर दिया था,  वह भी बाद में इंदिरा के खिलाफ हो गए थे.

    बारूह ने शाह आयोग की पूछताछ के समक्ष गवाही दी, जो मोरारजी देसाई सरकार द्वारा विशेष रूप से आपातकाल और इसके अतिरेक की पूछताछ के लिए स्थापित किया गया था. आयोग ने पाया कि देश में कानून और व्यवस्था के लिए कोई खतरा नहीं था जिसके लिए आपातकाल की घोषणा की जाए.

    इतिहास का खुद को दोहराना?

    वर्तमान में बीजेपी में कई लोग हैं जो अपने सर्वोच्च नेता की उदार प्रशंसा करते हुए बरूआ के विचारों का समर्थन करते हैं. 23 मई 2018 को मोदी सरकार के चार वर्ष के पूरे होने पर एबीपी न्यूज से बात करते हुए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, “मोदी जी भारत के लिये भगवान का वरदान बन कर आए हैं.”

    2017 में, चौहान ने मोदी शासन की उपलब्धियों को प्रशंसात्मक रूप से दर्शाने वाला विडियो जारी किया था, ‘साल तीन बेहतरीन’ जिसे कैलाश खेर ने गाया था.

    एक साल पहले, चौहान ने मोदी को “दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता” के रूप में वर्णित किया था और कहा, “वह (मोदी) एक विचारात्मक व्यक्ति हैं और उनमें अपने विचारों को  कार्यान्वित करने की मजबूत शक्ति है. दुनिया में जहां भी वह जाते हैं, वहां के लोग मोदी मोदी जपने लगते हैं. वह भारत के लिए भगवान का दिव्य उपहार है. वह 2022 तक भारत ‘विश्व गुरु’ बनाएंगे.

    उसी वर्ष वेंकैया नायडू ने मोदी को “भारत के लिए भगवान का उपहार” कहा था. नायडू, जो मोदी के कैबिनेट में मंत्री थे, ने बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राजनीतिक प्रस्ताव पेश करते हुए प्रधानमंत्री के लिए प्रसंशात्मक गीत गाया.

    इतिहास की कोई भी समानता केवल संयोग है.

    (यह लेख मूल रूप से वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई ने द प्रिंट के लिए लिखा है)

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