The Angle
जयपुर।
11 जून का ही दिन था जब 4 साल पहले 2020 में सचिन पायलट के विधायकों को दौसा में इकट्ठा करने की सूचना पर प्रदेश की सियासत में हड़कंप मच गया था और इसे प्रदेश की सियासत में किसी बड़े तूफान का संकेत माना जा रहा था। ऐसी ही एक 11 जून हाल ही में आई, लेकिन न कोई सियासत हुई, न ही हड़कंप मचा। 4 साल बाद फिर दौसा में कांग्रेस के तमाम विधायक और सांसद इकट्ठे हुए, लेकिन इस बार सियासत में कोई बड़ी हलचल नहीं देखी गई।
भंडाना में मौजूद रहे कांग्रेस के 8 सांसद, 25 विधायक
मौका था सचिन पायलट के पिता और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे राजेश पायलट की पुण्यतिथि का। इस मौके पर दौसा के भंडाना में राजेश पायलट के स्मृति स्थल पर पुष्पांजलि और सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन हर साल की तरह इस बार भी किया गया था। इसी आयोजन में शामिल होने कांग्रेस के तमाम नेता पहुंचे थे। इनमें सांसद संजना जाटव, मुरारी लाल मीणा, हरीश चंद्र मीणा, कुलदीप इंदौरा, उम्मेदाराम बेनीवाल, विधायक रामनिवास गावड़िया, हरीश चौधरी, पूर्व मंत्री ममता भूपेश, हेमाराम चौधरी जैसे कई दिग्गज कांग्रेस नेता शामिल थे।
सचिन पायलट खुद गाड़ी ड्राइव कर पहुंचे, प्रदेश कांग्रेस के ‘पायलट’ बनने की भी इच्छा
वहीं कार्यक्रम के लिए सचिन पायलट खुद गाड़ी ड्राइव कर भंडाना पहुंचे। ऐसे में फिर से इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को शानदार जीत दिलाने के लिए कांग्रेस आलाकमान डोटासरा को पार्टी संगठन में अन्य कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे सकता है, वहीं प्रदेश कांग्रेस की कमान एक बार फिर से सचिन पायलट के हाथों में आ सकती है। खास बात यह है कि इस आयोजन में कांग्रेस के हालिया निर्वाचित सभी 8 सांसद, और 69 में से 25 विधायक इस कार्यक्रम में मौजूद थे। इन नेताओं में सिर्फ पायलट समर्थक नेता ही शामिल नहीं थे, बल्कि वे चेहरे भी मौजूद थे जो मानेसर घटनाक्रम के समय सचिन पायलट के विरोधी खेमे में मौजूद थे और खुद को गहलोत समर्थक बताते थे। वहीं इसे अघोषित तौर पर सचिन पायलट के शक्ति प्रदर्शन के रूप में भी देखा जा रहा है।
हवा का रुख बदलता देख चुपचाप पाला बदलने में जुटे नेता
ऐसे में सियासत में चर्चा तो यह भी होने लगी है कि जिस तरह उगते सूरज को दुनिया सलाम करती है और यही जमाने की परंपरा भी रही है, ठीक उसी तर्ज पर कांग्रेस के नेता दबे पांव चुपचाप हवा का रुख बदलता देख पाला बदलने में जुट गए हैं। वहीं दूसरी तरफ जानकार यह भी मानकर चल रहे हैं कि प्रदेश की सियासत में शायद वो दौर अब खत्म हो चुका है जब अशोक गहलोत की जादूगरी के पक्ष और विपक्ष के लोग मुरीद हुआ करते थे। लेकिन पहले विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और खासकर गहलोत के बेटे वैभव गहलोत लगातार दूसरी बार सांसद का चुनाव हारे, उसके बाद कयास लगने लगे हैं कि अब गहलोत की जादूगरी के दिन लद चुके हैं।