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भाजपा में अपनी अनदेखी होने से ज्यादा इस बात से चिंतित हैं वसुंधरा राजे

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भाजपा में अपनी अनदेखी होने से ज्यादा इस बात से चिंतित हैं वसुंधरा राजे

The Angle

जयपुर।

पहले विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में भी 2 बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकीं और 5 बार झालावाड़ से सांसद रह चुकीं वसुंधरा राजे को पार्टी से साइडलाइन करने की कोशिश काफी समय से चल रही थी, लेकिन अभी तक इस पर वसुंधरा राजे का कोई रिएक्शन सामने नहीं आया था। लेकिन जब लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भी पार्टी ने उनकी कोई खैर-खबर नहीं पूछी और 5 बार के सांसद होने के बाद भी दुष्यंत सिंह को केंद्रीय कैबिनेट में जगह नहीं मिल पाई, तो आखिरकार वसुंधरा राजे की पीड़ा मन से निकलकर जुबां पर आ ही गई। भाजपा के वरिष्ठ नेता और आरएसएस के संस्थापकों में से एक सुंदर लाल भंडारी चैरिटेबल ट्रस्ट के एक कार्यक्रम के दौरान राजे ने अपने संबोधन में कहा कि आजकल लोग सबसे पहले उसी की अंगुली काटने का प्रयास करते हैं जिसे पकड़ कर वे चलना सीखते हैं।

पहले भी बयां कर चुकी हैं अपने मन की पीड़ा

अब सियासी गलियारों में चर्चा छिड़ गई है कि आखिर वसुंधरा राजे का इशारा किसकी तरफ था। दरअसल ये बयान ऐसे समय में आया है जब पूर्व नेता प्रतिपक्ष और भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ शेखावाटी क्षेत्र में भाजपा को मिली हार को लेकर अपनों के ही निशाने पर हैं। चूरू से लोकसभा सांसद राहुल कस्वां तो उन्हें सीधे तौर पर अपना टिकट कटने के लिए जिम्मेदार ठहरा ही चुके हैं, वहीं देवी सिंह भाटी और सीकर से पूर्व सांसद सुमेधानंद सरस्वती ने भी इशारों-इशारों में यही बात दोहराई।

वहीं प्रदेश की सियासत में आज कई नेता ऐसे हैं, जिन्होंने उन्हीं के सानिध्य में रहकर राजनीति के गुर सीखे। वैसे बता दें यह पहला मौका नहीं है, जब वसुंधरा राजे ने पार्टी में अपनी होती उपेक्षा पर अपनी पीड़ा जाहिर की हो। इससे पहले बाबोसा स्व. भैरोंसिंह शेखावत पर लिखी पुस्तक के अनावरण के मौके पर उन्होंने कहा था कि हमीं ने बख्शी थी धड़कनें जिन पत्थरों को, जुबां जब उन्हें मिली, तो हमीं पर बरस पड़े।

वसुंधरा राजे की अपनों से है ज्यादा नाराजगी

राजे के इन बयानों को लेकर जानकारों का मानना है कि वसुंधरा राजे की नाराजगी अपनी पार्टी से ज्यादा उन नेताओं से है, जिन्हें उन्होंने कभी आगे बढ़ाने का काम किया था, लेकिन जब पार्टी में उनकी अनदेखी हो रही है, तो उन नेताओं ने वसुंधरा राजे के लिए आवाज उठाने की बजाय हालात से समझौता करने को बेहतर समझ लिया है।

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